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परिपालिय-जंगम - जीवरासि परदव्व-हरण-संकुइय - हत्थु परणारि णिरिक्खण- कयणिवित्ति परिहरिय-माणे- मय- माय गव्वु सीलाहरणालंकरिय- भव्वु
पण इणि-य-यणाणंद-हेउ अइ-णिम्मलयर-णय-चारु चक्खु भुव - जुव-बल- सिरि-आलिंगियंगु संपीणिय परियण-सुवण वग्गु तहो अस्थि सहोयरु जण-मणिहु दीपविण भूइ जे हो जइणी णामेण भज़ णं णिव णव-जोग्वणहो लच्छि tas लोयोणिय कंति अवरहो लक्खण णामेण भज्ज
asमाणचरिउ
घत्ता - - तहि भुंजइ रज्जु, चिंतिय कज्जु वइरि-हरिण- गण - वाहु | णामेण पसिद्धु लच्छि-समिद्ध विस्सभूइ राहु ||४१॥
सो विस्सदि जण पउत्तु लहु भाइ जाउ विसाहणंदि
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तिरण- परिद्धि सुद्ध-भासि । दाण-जिणुद्धव-विहि-समत्थु | मुणि भणिय-संख-विरइय-पवित्ति । वंदियण - विंद- पविइण्ण- दव्वु । णिरुवद्दउ जहिं जणु वसइ सव्वु ।
उब्भासिय सयल-विहेय- हेउ । वर - भोय - पर जिय-दस - सयक्खु । णिय-कुल- हं- भूसणसिय पयंगु । पविमलयर - जस - धवलिय-धरग्गु । विणयारा हिय-गुरुयणु-कणिडु | णामेण सिद्धु विसाहभूइ । भाविय पिय-पय-पंकय-सलज्ज । णिम्मलयर-णीलुप्पल-दलच्छि । एक्कट्टिय जण-विंभर जणंति । णाणाविह वर-लक्खण मणोज्ज ।
घत्ता - पढमहो सुउ जाउ अइसुच्छाउ तियसावासु मुवि । तणु-बल- सिरि व बहु-गुण भूर्वउ सहुँ सोहग्गु लहेवि ॥ ४२ ॥
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परियाणिविणाणा-गुण- णिउत्तु । -कुल-कमलाहिनंदि ।
२. १. J. V. मण
३.
१, D. णवइ । २. V. सई । ३. D. रूउ । ४. D. भूउ ।
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[ ३.२.८
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