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________________ वड्डमाणचरिउ [१. १४.१ तहि अवसरि राएँ निय-मणेण झाइय अणिच्च अणुवेक्ख तेण । वउ जीविउ संपय रूउ आउ सव्वु वि णासह जिह संझ-राउ । णिस्सेस वत्थु संतइ वियाणि चलयर खणद्ध रमणीय माणि। णिय-रायलच्छि सुहि सो विरत्तु वीरवइ-पियालंकरिय-गत्तु । मणि चिंतइ सो विस-सण्णिहेसु रइ वंधइ संसारिय सुहेसु । जिउ घर-घरिणी-मोहेण भुत्तु उवभोय-भोय तण्ह" णिरुत्तु । भव असि-पंजरे अमणोरमाश दूसह-दुरंत-दुक्खम्मि ताश। पेसिज्जइ जिउ अणवरउ तेम सूई-विवरंतर तंतु जेम। जम्मंबुहि-मज्जंतहँ जणाहँ नर-जम्मु रम्मु चिंतिय-मणाहँ । भव-कोडि-मज्झि दुल्लहु भणंति कुल-बल-देसाईय तह हवंति । सेसु वि मई हिययारिणि सयावि विसएहिँ न जिप्पइ जा कयावि । घत्ता-अवगण्णई णउ अणुमण्णई जिउ अणाइ-मिच्छत्ते । सदसणु पाव-विहंसणु भव-भवे ताविय-गत्ते ॥१४॥ 10 5 अविरल-मिच्छत्तासत्तु जेण हिंडइ भव-सायर जीउ तेण । विसएसु विरत्तु अदूर-भव्यु परिहरिवि परिग्गहु दुविहु सव्वु । आवज्जिय रयणत्तउ रएण जिण-दिक्ख लेइ मोक्खहो करण । इय जाणंतु वि णिच्छउ सकज्जु त'हए मुंजाविउ जाइ रज्जु । एव हिंसमूल सा मइ महंत उम्मूलिवि दुम मण-गय लहंत । वल्लीव खिवव्वी वारणेण किं जंपिएण बहुणा अणेण । इय मण मण्णवि दिक्खाहिलासु दूरुज्झवि सीमंतिणि-विलासु मंदिर-सिहरग्गहो उत्तरेवि मणिमय सिंहासणि वइसरेवि । खणु एक्कु कुलक्कम-णंदणासु वाहरइ पुरउ णिय णंदणासु । तुहुँ पर असेस धरणीसराहँ लच्छीमंडणु खंडिय-पराह। किं वासर-सिरि दिवसाहिवेण विणु सोहइ लद्ध-णवोदएण । वित्थारंतहो जणयाणुराउ मेल्लंतहो रिउ विस्सासभाउ । घत्ता-मूल-बलहो जिय-वेरि-बलहो उण्णय-लच्छि करतहो । किं मई तुह अवरु कमल-मुह उवएसिव्वउ संतहो ।।१५।। 10 १४. १. D. वज्ज । २. V.° ई.। १५.१.D.J.V. तन्हए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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