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________________ 5 10 5 10 १० जहिँ असोय कुसुमोह -मालिया सहइ णाइँ वण-सिरिहे मेहला जहिं विसाल वाविउ पओहरा कीलमाण तिय तरुणि हय-भया हँ रति दंपइयाहरे जहिं सुरंगणा-गीय मोहिया मुणंति संधिय सरम्मया जहिँ गहीर पाणिय सरोवरे हंसिणी हंसो णुमिज्जए पुज्जहिँ पढंत - कीरालि-संकुले कीलमाण निरु णायरा णरा कुसुम-वास-वासिय दियंतरे Sagarmat ፡ तहिं फलिह-सिलायलि सण्णिसण्णु कंकेल्लि म हिरुह - तलिमुणीसु सुवसायरु नामेँ नमिय- भव्वु गंगापवाह-सम दिव्व वाणि तो पणवेष्पिणु पय-पय रुहा हूँ चिवि कंचन कुसुमेहिं जोडि उवविसि समीवे मुणीसरासु तें पुच्छिउ भो भयवंत संत उल्लंघिय भीव भवंबुरासि किह जाइ जीउ णिव्वाणु ठाणु घन्त्ता - - तहिँ सुंदरे रमिय पुरंदरे मलयाणिल हय तरुवर्र । विहरेविणु कोल करेर्विणु फल- पीणिय खेथरवरे ||८|| Jain Education International रुणु-ति भमराठि कालिया । पउम-णील-मणि-मय-विणिम्मला । असि-लय व्व णिम्मल मनोहरा । सुर-नर-णाय विरइय विभया । साराय अमुणिय-तमीहरे | लियि नाइँ भित्तीहि सोहिया । के मुति वा विसय संगया । सलिल - कील-संठिय वहूवरे । जणेवि पेम्मुर - विसइ णिज्जए । कलयलंत - कोइल - रवाउले | उ सरंति णिय - णिलउ खयरा । विविह-भूरुहावलि-निरंतरे । ८. १. V विरहेविणु । २. DV | ९. १. D. णुय । २. J. V. वि घत्ता - तो वयणइँ निहणिय मयणइँ सुणिवि मुणी समासइ | सह लोयहँ विहुणिय सोयहँ मणि आनंदु पयासइ ॥९॥ जिस पुंजोवरि णिसण्णु । देण णिहालि वर-झुणीसु । भव-भाव विउज्झिउ गलिय-गव्वु । तियरण - परिरक्खिय-दुविह पाणि । ह - मणि-विंवियय पर मुहाई । कर-जमलु चिरज्जिउ पाउ तोडि । दूसहयर-तव-सिरि-भासुरासु । संसारोरय-विस-हरण-मंत | वसु-भेय- भिण्ण-कम्मइँ विणासि । इल- परमेसर महु पुरउ भाणु । For Private & Personal Use Only [ १.८.१ www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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