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________________ प्रवचन-सारोद्धार ७९ -विवेचनसंज्ञा = आभोग अर्थात् जिनका अनुभव किया जाय। ये दो प्रकार की हैं(i) क्षयोपशमजन्य, (ii) उदयजन्य । (i) ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से उत्पन्न होने वाली मतिज्ञान के भेद रूप संज्ञायें। पूर्वोक्त तीनों (दीर्घकालोपदेशिकी, हेतुवादोपदेशिकी, दृष्टिवादोपदेशिकी) संज्ञायें क्षयोपशमजन्य हैं। (ii) कर्मोदयजन्य संज्ञा के चार भेद हैं (१) आहारसंज्ञा क्षुधा वेदनीय के उदय से तथाविध आहारादि के पुद्गलों को ग्रहण करने का अभिलाष आहार संज्ञा है। आहारसंज्ञा की उत्पत्ति के चार कारण हैं(i) अवमकोष्ठता = खाली पेट (ii) क्षुधावेदनीय कर्म का उदय (iii) भक्तकथा का श्रवण (iv) सतत आहार का चिन्तन (२) भयसंज्ञा-भय मोहनीय के उदय से होने वाली अनुभूति भयसंज्ञा है। नेत्र, मुख आदि की विक्रिया तथा रोमांच आदि इसके लक्षण हैं। भयसंज्ञा की उत्पत्ति के चार कारण हैं(i) हीनसत्त्वता-शौर्य का अभाव (ii) भयमोहनीय का उदय (iii) भयोत्पादक बात सुनना, दृश्य देखना (iv) सात प्रकार के भयों का चिंतन । (३) परिग्रह संज्ञा- लोभ मोहनीय के उदय से आसक्तिपूर्वक सचित्त व अचित्त द्रव्य को ग्रहण करना परिग्रह संज्ञा है। परिग्रह संज्ञा की उत्पत्ति के चार कारण हैं(i) परिग्रहयुक्तता-त्याग का अभाव (ii) लोभवेदनीय का उदय (iii) परिग्रहवर्धक बात सुनना या दृश्य देखना (iv) परिग्रह का चिंतन (४) मैथुन संज्ञा-वेदोदयवश स्त्री या पुरुष को देखना, देखकर प्रसन्न होना, ठहरना, कांपना आदि क्रिया मैथनसंज्ञा है। मैथुन संज्ञा की उत्पत्ति के चार कारण हैं(i) मांस, शोणित की वृद्धि (ii) मोहनीय कर्म का उदय (ii) कामकथा का श्रवण (iv) मैथुन का चिंतन ।। सभी संसारी जीवों को संसारवास पर्यंत ये चारों संज्ञायें होती हैं। कुछ एकेन्द्रिय जीवों में तो ये संज्ञायें स्पष्ट दिखाई देती हैं। • वनस्पति को खाद-पानी से पोषण मिलता है (आहार संज्ञा)। • लाजवन्ती का पौधा हाथ के स्पर्श से संकुचित हो जाता है (भय संज्ञा)। • बिल्व-पलाशादि अपने नीचे गड़े हुए धन को छुपाते हैं (परिग्रह संज्ञा)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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