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________________ द्वार १३९ ५८ ८........ : Radio2051550 (viii) भयमृषा-चोरादि के भय से असत्य बोलना। (ix) कथामृषा-कथा को रसमय बनाने के लिये असंभव को भी संभव बनाना । (x) उपघात मृषा—किसी को चोट पहुँचाने के लिये कहना 'तू चोर है, तू बदमाश है' इत्यादि ॥८९२ ॥ ३. सत्यमृषा–सत्य और असत्य से मिश्रित भाषा (मिश्र भाषा)। इसके दस भेद हैं। (i) उत्पन्नमिश्रा गाँव में दस से कम या अधिक बच्चे जन्मने पर भी यह कहना कि आज गाँव में दस बच्चे जन्मे हैं। यह व्यवहार से सत्यमृषा है। क्योंकि कल तुम्हें सौ रुपये दूंगा, ऐसा कह कर पचास देने पर भी व्यवहार में इसे असत्य नहीं समझा जाता। यदि एक भी बच्चा न जन्मा होता या एक भी रुपया नहीं दिया होता तो पूर्वोक्त कथन सर्वथा असत्य होता अन्यथा सत्यमृषा। (ii) विगतमिश्रा-गाँव में कम ज्यादा लोग मरने पर भी कहना कि आज इस गाँव में इतने लोग मरे। (iii) अभयमिश्रा जन्म या मृत्यु कम ज्यादा लोगों की हुई हो तो भी कहना कि इतने जन्मे और इतने मरे। (iv) जीवमिश्रा अधिक जीवित व अल्पमृत जीवयुक्त शंख, सीपादि के ढेर को देखकर, कहना कि यह जीवों का ढेर है । जीवित की अपेक्षा यह कथन सत्य है और मृत की अपेक्षा से असत्य है अत: मिश्र कथन है। (v) अजीवमिश्रा-शंख-सीपादि के ढेर में बहुत से जीव मरे हुए हों और अल्प जीवित हो तो भी कहना कि यह मृत जीवों का ढेर है। यहाँ मरे हुए की अपेक्षा सत्य, जीवित की अपेक्षा असत्य कथन होने से यह मिश्रभाषा कहलाती है। (vi) जीवाजीवमिश्रा मरे हुए और जीवित जीवों के ढेर में संख्या का निश्चय न होने पर भी कहना कि इसमें इतने मरे हुए हैं और इतने जीवित हैं। संख्या निश्चित न होने पर भी निश्चित संख्या बताना मृषा है। जीवित व मृत दोनों ढेर हैं अत: यह कथन सत्य भी है। (vii) अनंतमिश्रा—'मूला' आदि अनंतकाय है, उसके पत्ते अनंतकाय नहीं हैं, किंतु दोनों को अनंतकायिक कहना अथवा प्रत्येक वनस्पति से मिश्रित अनंतकाय को यह अनंतकाय है ऐसा कहना। (viii) अद्धामिश्रा-काल सम्बन्धी सत्य, असत्य बोलना जैसे प्रात:काल जल्दी काम करना हो तो सोये हुए व्यक्ति को सूर्योदय न होने पर भी कहना कि 'जल्दी उठो' सूर्योदय हो गया है। रात में काम करना हो तो दिन रहने पर भी कहे कि 'रात्रि हो गई है।' (ix) प्रत्येक मिश्रा-प्रत्येक वनस्पति और अनंतकाय मिश्रित हो तो भी उसे प्रत्येक वनस्पति ही कहना। (x) अद्धाद्धामिश्रा-दिन या रात का एक हिस्सा अद्धाद्धा कहलाता है, जैसे प्रथम प्रहर में कोई काम कराना हो तो देर न हो जाये इसलिये करने वाले को कहना कि जल्दी करो मध्याह्न हो गया है ॥८९३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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