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प्रवचन-सारोद्धार
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वासं कोडीसहियं आयामं कटु आणुपुव्वीए । गिरिकंदरं व गंतुं पाओवगमं पवज्जेइ ॥८७७ ॥
-गाथार्थसंलेखना–चारवर्ष पर्यन्त विचित्र प्रकार का तप करना....चार वर्ष पर्यन्त विचित्रतप (विविध प्रकार का तप) विगय रहित पारणा वाला करना। दो वर्ष एकान्तरित आयंबिल सहित उपवास करना। पश्चात् छ: मास तक विकृष्ट नहीं, पर उपवासादि हलका तप और पारणे के दिन परिमित आयंबिल करना। पश्चात् छ: मास तक विकृष्ट तप करना...फिर एक वर्ष पर्यन्त कोटिसहित आयंबिल करना। इस प्रकार बारह वर्ष तक संलेखना करने के पश्चात् पर्वत की गुफा में जाकर पादपोपगमन अनशन स्वीकार करना चाहिये ॥८७५-८७७ ॥
-विवेचनसंलेखना =आगमोक्त विधि से शरीर को क्षीण करना। यह तीन प्रकार की है
(i) उत्कृष्ट-१२ वर्ष तक तप करना। प्रथम के ४ वर्ष में
उपवास, छट्ट, अट्ठम आदि विचित्रतप करना। पारणे में
निर्दोष आहार ग्रहण करना। मध्य के ४ वर्ष में
उपवास, छट्ठ, अट्ठम आदि विचित्र तप करना। ____ पारणे में
विकृतिरहित आहार ग्रहण करना। आगे के २ वर्ष में
एकान्तर उपवास करना। पारणे में
आयंबिल करना। आगे के ६ मास में
उपवास या छट्ठ करना। पारणे में
ऊनोदरी युक्त आयंबिल करना। आगे के ६ मास में = अट्ठम, दशम, द्वादश आदि विकृष्टतप करना । पारणे में
आयंबिल करना। १२ वें वर्ष में
कोटि सहित निरन्तर आयंबिल करना । . अन्यमतानुसार-१२ वें वर्ष में एकान्तर उपवास और पारणे में आयंबिल करना।
१२वें वर्ष में आयंबिल में प्रतिदिन एक-एक कवल कम करते जाना। अन्त में एक कवल का पारणा करना। फिर उसमें से भी प्रतिदिन एक-एक दाना कम करते जाना अंत में एक दाने का पारणा करना। जैसे दीपक में तैल और बाती दोनों एक ही साथ क्षीण हो जाने से दीपक स्वत: बुझ जाता है वैसे ही इस प्रकार तप करते-करते आयष्य और शरीर एक ही साथ क्षय हो जाने से 'जीवनदीप' भी स्वत: बुझ जाता है। बारहवें वर्ष के अन्तिम चार मास में मुँह में तैल का कुल्ला भरकर रखे, जब थूकना हो, किसी पात्र में थूककर उष्ण जल से मुँह साफ करें । उस समय यदि तैल का कुल्ला मुँह में न रखा जाये तो अति तप करने से मुँह सर्वथा सूख जाता है और नवकार मंत्र का उच्चारण भी कठिन हो जाता
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