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प्रवचन-सारोद्धार
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-विवेचनउत्पादक द्रव्य के भेद से वस्त्र तीन प्रकार का होता है। १. एकेन्द्रिय-अवयव-निष्पन्न -कपास आदि से बना हुआ सूती वस्त्र । २. विकलेन्द्रिय-अवयव-निष्पन्न- कीड़ों से निर्मित रेशमी वस्त्र । विशेष कारण से ग्राह्य । ३. पञ्चेन्द्रिय-अवयव-निष्पन्न–भेड़ आदि के केशों से बना हुआ ऊनी वस्त्र पूर्वोक्त वस्त्र यथाकृत आदि भेद से तीन प्रकार के हैं।
१. यथाकृत—जैसा लिया जाये, वैसा ही पहिना जाये। जिसे सीने या काटने की आवश्यकता न हो। यह वस्त्र अतिशुद्ध है। क्योंकि ऐसा वस्त्र ग्रहण करने से स्वाध्याय की हानि नहीं होती है।
२. अल्पपरिकर्म-जिसे एकबार फाड़ कर सीना पड़े। यह वस्त्र शुद्ध है। क्योंकि सीने का परिकर्म अल्प होने से स्वाध्याय की हानि भी अल्प होती है।
३. बहुपरिकर्म-जिसके बहुत से टुकड़े करके सीना पड़े ऐसा वस्त्र अशुद्ध है, कारण स्वाध्याय की हानि होती है।
मिल सके वहाँ तक पहिले यथाकत वस्त्र ग्रहण करे, उसके अभाव में अल्पपरिकर्म वाला ग्रहण करे। न मिले तो अगत्या बहुपरिकर्मवाला ग्रहण करे । तीनों ही प्रकार के वस्त्र गच्छवासी मुनि को लेने कल्पते हैं।
४. कल्प्य वस्त्र१. साधु के निमित्त खरीदा हुआ न हो। २. साधु के निमित्त बनाया हुआ न हो। ३. पुत्रादि की इच्छा न होने पर साधु को देने के लिये उनसे जबरदस्ती छीना हुआ न हो। ४. कहीं से सामने लाकर दिया जाने वाला न हो (अभ्याहृत)। यह दो प्रकार का है
(i) स्वग्राम अभ्याहृत—जिस गाँव में मुनि है, उसी गाँव में दुकान आदि से घर लाया हुआ वस्त्र। वस्त्र लाते हुए मुनि ने न देखा हो, किंतु उनके निमित्त लाया हुआ होने से वह वस्त्र मुनि को लेना नहीं कल्पता। वस्त्र लाते हुए साधु ने देखा हो, किंतु वह साधु के निमित्त लाया हुआ न हो तो साधु को लेना कल्पता है।
दोष-पिंड-ग्रहण की तरह ।
(ii) परग्राम अभ्याहत-अन्य ग्राम से साधु के निमित्त लाया हुआ वस्त्र । ऐसा वस्त्र साधु को लेना नहीं कल्पता।
दोष-पिण्ड-ग्रहण की तरह । ५. अप्रमित्यका साधु के निमित्त दूसरों से उधार लाया हुआ वस्त्र साधु को लेना नहीं कल्पता । दोष-पिण्ड-ग्रहण की तरह। वस्त्रग्रहण के दोष भी आहार की तरह दो प्रकार के हैं---- (i) अविशोधिकोटि-साधु के लिये खरीदा हुआ और साधु के लिये बनाया हुआ वस्त्र अग्राह्य है। (ii) विशोधि-कोटि-साधु के लिये धुलाया हुआ वस्त्र समय बीतने पर ग्रहण किया जा सकता है।
ग्रहण-विधि-शुद्ध वस्त्र क्रहण करने से पूर्व साधु वस्त्र को अच्छी तरह से देखे। तत्पश्चात् गृहस्थ को कहे कि 'तुम इस वस्त्र को चारों तरफ से देखो, गृहस्थ भी ऐसा ही करे ।' यदि वस्त्र में
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