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________________ प्रवचन-सारोद्धार ४०९ आसी दाढा तग्गय महाविसाऽऽसीविसा दुविहभेया। ते कम्मजाइभेएण णेगहा चउविहविकप्पा ॥१५०१ ॥ खीरमहुसप्पिसाओवमाणवयणा तयासवा हुंति । कोट्ठयधन्नसुनिग्गलसुत्तत्था कोट्ठबुद्धीया ॥१५०२ ॥ जोसुत्तपएण बहु सुयमणुधावइ पयाणुसारी सो। जो अत्थपएणऽत्थं अणुसरइ स बीयबुद्धीओ ॥१५०३ ॥ अक्खीणमहाणसिया भिक्खं जेणाणियं पुणो तेणं। परिभुत्तं चिय खिज्जइ बहुएहिंवि न उण अन्नेहिं ॥१५०४ ॥ भवसिद्धियपुरिसाणं एयाओ हुति भणियलद्धीओ। भवसिद्धियमहिलाणवि जत्तिय जायंति तं वोच्छं ॥१५०५ ॥ अरहंत चक्किकेसवबलसंभिन्ने य चारणे पुव्वा । गणहरपुलायआहारगं च न हु भवियमहिलाणं ॥१५०६ ॥ . अभवियपुरिसाणं पुण दस पुव्विल्लाउ केवलित्तं च । उज्जमई विउलमई तेरस एयाउ न हु हुति ॥१५०७ ॥ अभवियमहिलाणंपि हु एयाओ हुंति भणियलद्धीओ। महुखीरासवलद्धीवि नेय सेसा उ अविरुद्धा ॥१५०८ ॥ -गाथार्थ___ अट्ठावीस लब्धियाँ—१. आम(षधिलब्धि २. विपँडौषधिलब्धि ३. खेलौषधिलब्धि ४. जल्लौषधि लब्धि ५. सौषधिलब्धि ६. संभिन्नश्रोतोलब्धि ७. अवधिलब्धि ८. ऋजुमतिलब्धि ९. विपुलमतिलब्धि १०. चारणलब्धि ११. आशीविषलब्धि १२. केवलीलब्धि १३. गणधरलब्धि १४. पूर्वधरलब्धि १५. अरहंतलब्धि १६. चक्रवर्तीलब्धि १७. बलदेवलब्धि १८. वासुदेवलब्धि १९. क्षीरमधुसर्पि-आसवलब्धि २०. कोष्ठकबुद्धिलब्धि २१. पदानुसारीलब्धि २२. बीजबुद्धिलब्धि २३. तैजसलब्धि २४. आहारक लब्धि २५. शीतलेश्यालब्धि २६. वैक्रियलब्धि २७. अक्षीणमहानसीलब्धि एवं २८. पुलाकलब्धि-ये अट्ठावीस लब्धियाँ हैं। परिणाम विशेष और तप विशेष के प्रभाव से जीव को ये लब्धियाँ प्राप्त होती हैं ॥१४९२-१४९५ ॥ आमर्ष अर्थात् संस्पर्श । विप्रुष अर्थात् मूत्र और विष्ठा। अन्य आचार्यों के अनुसार विड् अर्थात् विष्ठा और पत्ति यानि पेशाब अर्थ है। विप्रुड् से अन्य सुगन्धित अवयवों का ग्रहण होता है जो रोगादि को उपशान्त करने में समर्थ हैं ॥१४९६-९७ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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