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________________ द्वार २६९-२७० ४०८ ये १६ ही वापिकायें दधिमुख पर्वत का आधार स्थल हैं। इस प्रकार नन्दीश्वरद्वीप में प्रत्येक दिशा में १३-१३ पर्वत हैं—जैसे, मध्य में अंजनगिरि, चारों दिशा की ४-४ वापिकाओं में ४-४ दधिमुख, चारों विदिशाओं में २-२ रतिकर कुल = १३ पर्वत । चारों दिशा में १३ x ४ = ५२ पर्वत । प्रत्येक पर्वत पर एक-एक सिद्धायतन है अत: कुल सिद्धायतन भी ५२ हुए। इनमें विराजमान जिन प्रतिमाओं की पूजा हेतु चारों निकायों के देवता सदाकाल आते रहते हैं। नन्दीश्वर द्वीप के विषय में विस्तार से जानने के इच्छुक जीवाभिगम, द्वीपसागर प्रज्ञप्ति, संग्रहणी आदि ग्रन्थों से जान सकते हैं। इन ग्रन्थों में जो वस्तुभेद है वह मतान्तर समझना चाहिये ।।१४७२-९१ ।। |२७० द्वारः | लब्धियाँ आमोसहि विप्पोसहि खेलोसहि जल्लओसही चेव। सव्वोसहि संभिन्ने ओही रिउ-विउलमइलद्धी ॥१४९२ ॥ चारण आसीविस केवलिय गणहारिणो य पुव्वधरा । अरहंत चक्कवट्टी बलदेवा वासुदेवा वा ॥१४९३ ॥ खीरमहुसप्पिआसव कोट्ठयबुद्धी पयाणुसारी य । तह बीयबुद्धितेयग आहारग सीयलेसा य ॥१४९४ ॥ वेउव्विदेहलद्धी अक्खीणमहाणसी पुलाया य। परिणामतववसेणं एमाई हुंति लद्धीओ ॥१४९५ ॥ संफरिसणमामोसो मुत्तपुरीसाण विप्पुसो वावि (वयवा)। अन्ने विडिति विट्ठा भासंति पइत्ति पासवणं ॥१४९६ ॥ एए अन्ने य बहू जेसिं सब्वेवि सुरहिणोऽवयवा। रोगोवसमसमत्था ते हुति तओसहिं पत्ता ॥१४९७ ॥ जो सुणइ सव्वओ मुणइ सव्वविसए उ सव्वसोएहिं । सुणइ बहुएवि सद्दे भिन्ने संभिन्नसोओ सो ॥१४९८ ॥ रिउ सामन्नं तम्मत्तगाहिणी रिउमई मणोनाणं ।। पायं विसेसविमुहं घडमेत्तं चिंतियं मुणइ ॥१४९९ ॥ विउलं वत्थुविसेसण नाणं तग्गाहिणी मई विउला। चिंतियमणुसरइ घडं पसंगओ पज्जवसएहिं ॥१५०० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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