SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 412
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रवचन-सारोद्धार ३९५ आषाढ़ सुदी पूनम, आसोज सुदी पूनम, कार्तिक सुदी पूनम तथा चैत्र सुदी पूनम को होने वाले महोत्सव-ये चार 'महामह' है और प्रतिपदा पर्यन्त चलते हैं ।।१४५८ ।। चन्द्रग्रहण में उत्कृष्ट बारह प्रहर, जघन्य आठ प्रहर, सूर्यग्रहण में उत्कृष्ट सोलह प्रहर और जघन्य बारह प्रहर की अस्वाध्याय होती है। यदि सूर्य आदि सग्रहण अस्त हो जाये तो एक अहोरात्रि की अस्वाध्याय होती है। किन्तु परंपरा इस प्रकार है-सूर्य आदि यदि दिन में ग्रहणमुक्त हो गये हों तो उस दिन ही अस्वाध्याय होती है ।।१४५९-६० ।। दो सेनापतियों का परस्पर युद्ध चल रहा हो, किसी कारण से वातावरण संक्षुब्ध हो, राजा के मर जाने के पश्चात् जब तक दूसरा राजा न बने, जब तक भय शान्त न हो तब तक अस्वाध्याय होती है। गाँव का अधिपति आदि यदि उपाश्रय से सात घरों के भीतर मर जाये तो अहोरात्रि की अस्वाध्याय होती है। यदि कोई अनाथ सौ हाथ के भीतर मर जाये तो स्वाध्याय नहीं करना चाहिये। शव सम्बन्धी जो कुछ हो देखकर वहाँ से हटा देने के बाद स्वाध्याय करना कल्पता है॥१४६१-६२।। . गाँव का मुखिया, व्यवस्थापक, बड़े परिवार वाला, शय्यातर आदि यदि उपाश्रय से सात घर के भीतर मर जाये तो अहोरात्र पर्यंत स्वाध्याय नहीं होता। अन्यथा ये साधु हृदयहीन हैं, ऐसा लोकापवाद होने की संभावना रहती है। यदि स्वाध्याय करना हो तो मन्द स्वर से करना चाहिये ।।१४६३ ।। तिर्यंच पञ्चेन्द्रिय का रक्त, मांस आदि यदि साठ हाथ के भीतर पड़ा हो तो उस क्षेत्र में स्वाध्याय नहीं करना चाहिये। परन्तु तीन गलियाँ छोड़कर स्वाध्याय कर सकते हैं। यदि शहर हो और राजमार्ग हो तो एक राजमार्ग छोड़कर स्वाध्याय करना चाहिये। यदि रुधिरादि पूरे नगर में बिखरे हुए हों तो गाँव के बाहर जाकर स्वाध्याय करना चाहिये ॥१४६४ ।। जलचर आदि छोटे जीवों के रुधिर आदि गिरने के समय से तीन पोरसी तक अस्वाध्याय पर बड़े जीव जैसे चूहा-बिल्ली आदि के रुधिर आदि गिरने पर आठ पोरसी तक अस्वाध्याय होता है। भाव से नन्दी आदि सूत्रों का अस्वाध्याय होता है। रुधिर, मांस, चर्म एवं हड्डी के भेद से जलज आदि चार प्रकार के हैं ॥१४६५ ।। साठ हाथ के भीतर मांस को धोकर फिर बाहर ले गये हों तो भी वहाँ तीन प्रहर तक स्वाध्याय नहीं हो सकता। महाकाय हो तो अहोरात्रि का अस्वाध्याय और रुधिर पानी के प्रवाह में बह गया हो तो वहाँ स्वाध्याय कर सकते हैं॥१४६६ ॥ अंडा गिरा किन्तु फूटा न हो तो उसे दूर रख देने के पश्चात् स्वाध्याय कर सकते हैं। किन्तु अंडा फूटा हो और उसका कलल मक्खी का पाँव डूबे इतना भी जमीन पर गिरा हो और उसे जमीन खोद कर निकाल दिया हो तो भी वहाँ तीन प्रहर तक स्वाध्याय नहीं हो सकता ।।१४६७ ॥ जरायु-रहित उत्पन्न होने वाले प्राणियों के प्रसव होने पर तीन प्रहर का अस्वाध्याय होता है। जरायु सहित उत्पन्न होने वाले प्राणियों के प्रसव में जरायु पड़े तब तक तथा जरायु पड़ने के पश्चात् तीन प्रहर का अस्वाध्याय होता है। राजमार्ग पर अस्वाध्यायिक की बूंदें पड़ी या पानी में बह गई हो तो स्वाध्याय करना कल्पता है ।।१४६८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy