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________________ ३९२ 1 ७. पश्चिम उत्तर की आभ्यंतर कृष्णराजी के बीच में 'शुक्राभ' विमान है ८. उत्तर की दोनों कृष्णराजी के बीच में 'सुप्रतिष्ठाभ' विमान है । ९. तथा इन सभी कृष्णराजी के मध्यभाग में 'रिष्ठाभ' विमान है I विमान निवासी देव पूर्वोक्त विमानों में लोकान्तिक देव रहते हैं। पाँचवें ब्रह्मलोक के समीप रहने से ये देवता लोकान्तिक कहलाते हैं । ये देव ८ सागर की स्थिति वाले तथा ७-८ भव के पश्चात् मोक्ष जाने वाले हैं । इनके नाम क्रमश: सारस्वत, आदित्य, वह्नि, वरुण, गर्दतोय, तुषित, अव्याबाध, आग्नेय (मरुत्) तथा रिष्ठ (रिष्ठ नामक विमान में रहने वाले) हैं। इन देवताओं का कर्तव्य है कि तीर्थंकर परमात्मा की दीक्षा एक वर्ष पूर्व स्वयंबुद्ध जिनेश्वर परमात्मा को तीर्थ की प्रवर्तना हेतु निवेदन करना देवों का परिवार सारस्वत वह्नि गर्दतोय अव्याबाध आदित्य वरुण तुषित आग्नेय-रिष्ठ Jain Education International (विमान में ) ( विमान में ) (विमान में ) (विमान में) = ७ देव व ७०० का परिवार है । = १४ देव व १४०० का परिवार है । = ७ देव व ७००० का परिवार है । = ९ देव व ९०० का परिवार है। ।। १४४१-४९ ।। नोट- पृ. ३९१ पर दिया गया चित्र अष्टकृष्णराजी का है। जहां तमस्काय का अंत है वहां कृष्णराजी का प्रारंभ है । अर्थात् ब्रह्मदेवलोक के तीसरे रिष्टनामक प्रतर के चारों और तिकोन - चतुष्कोण आकार में एक-एक दिशा में दो-दो कृष्णराजियां है। इनके मध्य में एवं अन्तराल में नवलोकान्तिक देवों के नौ विमान हैं। अभ्यन्तर कृष्णराजी चतुष्कोण एवं बाह्य तिकोनाकार है । ये कृष्णराजियां वैमानिक देवकृत हैं । ये पृथ्वी परिणाम रूप हैं। जल परिणाम रूप नहीं हैं। इनमें क्षुद्र जीव उत्पन्न होते हैं । इनका आयाम असंख्य हजार योजन का विष्कंभ संख्याता हजार योजन का तथा परिधि असंख्याता हजार योजन की है । २६८ द्वार : द्वार २६७-२६८ अस्वाध्याय संजमघा उप्पा सादिव्वे वुग्गहे य सारीरे । महिया सच्चित्तरओ वासम्म य संजमे तिविहं ॥ १४५० ॥ महिया उ गब्भभासे सच्चित्तरओ य ईसिआयंबे । वासे तिनि पगारा बुब्बुय तव्वज्ज फुसिए य ॥१४५१॥ दव्वे तं चिय दव्वं खेत्ते जहियं तु जच्चिरं कालं । ठाणा भास भावे मोत्तं उस्सासउम्मे से ॥ १४५२ ॥ For Private & Personal Use Only 4 www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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