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-विवेचन
मान—शरीर का एक प्रमाणविशेष, जो जल के निर्गम से समझा जाता है । जैसे पुरुष के शरीर की ऊंचाई के प्रमाण से कुछ अधिक बड़ी व पानी से परिपूर्ण कुण्डी में जिस पुरुष के प्रवेश करने पर द्रोण प्रमाण जल बाहर निकल जाये अथवा द्रोण प्रमाण जल से न्यून कुंडी में जिस पुरुष के प्रवेश करने पर कुंडी परिपूर्ण हो जाये उस पुरुष का शरीर 'मान' प्रमाणयुक्त है 1
उन्मान —सार पुद्गलों से निर्मित, जिस पुरुष के शरीर का तौल अर्धभार जितना हो वह 'उन्मान' प्रमाणयुक्त है 1
प्रमाण - अपने अंगुल से १२ अंगुल प्रमाण मुख, प्रमाणयुक्त कहलाता है । ऐसे ९ मुख के बराबर जिसका सम्पूर्ण शरीर है अर्थात् जिस पुरुष के शरीर की ऊँचाई अपने अंगुल से १०८ अंगुल प्रमाण होती है वह 'प्रमाणोपेत' कहा जाता है
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द्वार २५८-२५९
उत्तमपुरुष निश्चित रूप से मान, उन्मान व प्रमाण युक्त होते हैं ॥ १४१० ॥
• द्रोण = पूर्वकाल में जो बड़े घड़े पानी भरने के काम में आते थे, उस घड़े से सवा घड़ा जितना जल द्रोण परिमाप है ।
भार - ६ सरसव = १ यव, ३ यव = १ चिरमी, ३ चिरमी = १ वाल, १६ वाल = १ गद्यानक (६४ रति का एक तोलने का माप), १० गद्यानक = १ पल, १५० पल, = १ मण, १० मण = १ धड़ी, १० धड़ी = १ भार
२५९ द्वार :
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१८ भक्ष्य - भोजन
सूओ यणो जवन्नं तिन्नि य मंसाई गोरसो जूसो । भक्खा गुललावणिया मूलफला हरियगं डागो ॥१४११ ॥ होइ रसालू य तहा पाणं पाणीय पाणगं चेव । अट्ठारसमो सागो निरुवहओ लोइओ पिण्डो ॥ १४१२ ॥ जलथलखहयरमंसाइं तिन्नि जूसो उ जीरयाइजओ । मुग्गरसो भक्खाणि य खंडखज्जयपमोक्खाणि ॥१४१३ ॥ गुललावणिया गुडप्पपडीउ गुलहाणियाउ वा भणिया । मूलफलंतिक्कपयं हरिययमिह जीरयाईयं ॥ १४१४ ॥
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