SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 386
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रवचन-सारोद्धार ३६९ (५) अन्तरिक्ष अन्तरिक्ष में होने वाली घटनायें जैसे, ग्रहवेध (ग्रहण), अट्टहास आदि आन्तरिक्ष निमित्त है। इन्हें देखकर शुभाशुभ बताना। ग्रहवेध = एक ग्रह का दूसरे ग्रह में से निकलना। अट्टहास = अचानक आकाश में भयानक हँसी की आवाज आना । 'यदि कोई भी ग्रह चन्द्र के मध्य से निकले तो राजभय, प्रजाक्षोभ आदि उपद्रव पैदा होते हैं।' आकाश में गान्धर्वनगर की रचना देखकर शुभाशुभ बताना भी इसी के अन्तर्गत आता है। 'यदि गंधर्वनगर की रचना भूरे रंग की है तो अनाज का नाश होता है। मजीठवर्णीय है तो गाय, भैंस आदि पशुओं का नाश होता है। अव्यक्तवर्ण वाली नगर संरचना सेना में क्षोभ पैदा करती है। स्निग्ध, प्राकार व तोरण सहित, उत्तर दिशा में दिखाई देने वाला गांधर्वनगर राजा की विजय का सूचक है।' ___ (६) भौम-भूकंप आदि के द्वारा शुभाशुभ बताना 'भौम निमित्त' है । जैसे, 'यदि भयंकर आवाज के साथ भूकंप होता है तो सेनापति, मंत्री, राजा व राष्ट्र अवश्य पीड़ित बनते हैं' ॥१४०८ ॥ (७) व्यंजन-तिल, मसे वगैरह। इनके आधार पर शुभाशुभ बताना। (८) लक्षण लांछन, जैसे लसणिया आदि इनके आधार से शुभाशुभ बताना। जिस नारी के नाभि से नीचे के भाग में कुंकुम की तरह लालवर्ण का लसणिया या मसा होता है वह शुभ मानी जाती है। 'निशीथ' में लक्षण व व्यंजन के विषय में इस प्रकार बताया है कि-शरीर का प्रमाण आदि लक्षण है तथा मसे आदि व्यंजन है। अथवा शरीर के सहजात चिह्न लक्षण कहलाते हैं तथा पश्चात् उत्पन्न होने वाले व्यंजन हैं। पुरुषों के लक्षण पुरुषों के विभाग के अनुसार उनके लक्षणों की संख्या भी अलग-अलग है। जैसे, सामान्य मनुष्य में ३२ लक्षण, बलदेव वासुदेव में १०८ लक्षण, चक्रवर्ती व तीर्थंकरों के १००८ लक्षण हैं। ये वे लक्षण हैं जो शरीर में स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं। यदि सत्त्व, धैर्य आदि आंतरिक गुणों की दृष्टि से देखा जाये तो तीर्थंकरों की अपेक्षा पुरुष के अनंतगुण हैं ॥१४०९ ॥ २५८ द्वार : मान-उन्मान-प्रमाण 86005000000sdadible254086869086665280665365 8286655553666665088888888888888 जलदोणमद्धभारं समुहाइं समूसिओ उ जो नव उ। माणुम्माणपमाणं तिविहं खलु लक्खणं नेयं ॥१४१० ॥ -गाथार्थमान-उन्मान और प्रमाण-द्रोण-परिमाण जल मान कहलाता है। अर्धभार परिमाण तौल उन्मान है। अपने मुंह से नौ गुणा ऊँचा पुरुष प्रमाणोपेत है। इस प्रकार मान, उन्मान और प्रमाण का लक्षण समझना चाहिये ॥१४१०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy