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________________ ३३६ द्वार २३६ OMGanewwwwwwe ___ इसके अतिरिक्त सांयोगिक भांगे उपलबध करने की अन्य रीति भी है। जैसे—दूसरी रीति-- संयोग १२ / ११ / १० / ९ । ८ । ७ ६ । ५ ४ | ३ २ । १ | भांगे| १ | १२ | ६६ / २२० ४९५ / ७९२ ९२४ | ७९२ ४९५ / २२० | ६६ | १२ | प्रथम लाइन में जितने व्रत लेने हों क्रमश: उतने अंक लिखना जैसे १२, ११, १० आदि । उनके नीचे विपरीत अंक लिखना जैसे १२ के नीचे १, ११ के नीचे २ यावत् १ के नीचे १२ । तत्पश्चात् १ को १२ से गुणा करना व गुणनफल उसके नीचे रखना। १ को १२ से गुणा करने पर १२ गुणनफल हुए उसे उसके नीचे रखने के पश्चात् उसे दूसरी पंक्ति के ऊपर वाले अंक २ से भाग देकर जो आवे उसे २ के नीचे स्थित अंक से गुणा करके गुणनफल को उसी के नीचे रख देना। जैसे १२ को दसरी पंक्ति के ऊपर से २ से भाग देने पर ६ आये, उसे ११ से गुणा करने पर ६६ आये। इसका अर्थ है कि १२ व्रत में से यदि कोई व्यक्ति १-१ व्रत लेता है तो उसके १२ भांगे होते हैं। यदि कोई २-२ व्रत ले तो ६६ भांगे होते हैं। इस प्रकार ६६ को तीसरी पंक्ति के ऊपर वर्ती अंक से भाग देकर उसके नीचे के अंक से गुणा करने पर जो संख्या आती है वे तीन संयोगी भांगे हैं। इस प्रकार पूर्ववर्ती गुणनफल को ऊपर की संख्या से भाग देना तथा भागफल को नीचे की संख्या से गुणा करना, जो संख्या आती है वही ऊपरवर्ती संख्या के सांयोगिक भांगे हैं। तीसरी रीति विवक्षित व्रतों के पद की संख्या पट्ट पर लिखकर अक्ष क्रम से संख्या बदलने पर जब तक बदलना संभव हो, विवक्षित व्रत के उतने भंग होते हैं। अर्थात् एक संयोगी, द्विसंयोगी आदि भांगे बनते . हैं। यद्यपि यहाँ १२वी देवकुलिका की भंग संख्या बताना इष्ट है तथापि लाघव को ध्यान में रखते हुए पाँच अणुव्रतों के उदाहरण के द्वारा भांगे बताये जाते हैं। एक संयोगी = ५ भांगे १. अहिंसा २. सत्य ३. अस्तेय ४. ब्रह्मचर्य ५. अपिरग्रह द्विसंयोगी = १० भांगे १. अहिंसा, सत्य ६. सत्य, ब्रह्मचर्य २. अहिंसा, अस्तेय ७. सत्य, अपरिग्रह ३. अहिंसा, ब्रह्मचर्य ८. अस्तेय, ब्रह्मचर्य ४. अहिंसा, अपरिग्रह ९. अस्तेय, अपरिग्रह ५. सत्य, अस्तेय १०. ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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