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________________ ३१६ द्वार २३१-२३२ 00:0-140:525422000 • प्रस्तुत ग्रंथ में जीवों में जो समुद्घात बताये हैं, उनका प्रज्ञापना, पंचसंग्रह, जीव-समास आदि के साथ विरोध आता है। चतुर्विंशति दंडक के क्रम से समुद्घात की चर्चा करने वाला प्रज्ञापना सूत्र कहता है किनारकी में- ४ समुद्घात (वेदना, कषाय, मरणान्तिक, वैक्रिय), तथाविध स्वभाव के कारण नारकी में तेजोलेश्यालब्धि, आहारकलब्धि और केवललब्धि नहीं होती। १० भवनपति में–५ समुद्घात (वेदना, कषाय, मारणान्तिक, वैक्रिय और तैजस्) भवनपति में तेजोलेश्या होने से पूर्वोक्त ५ समुद्घात हैं। एकेन्द्रिय-विकलेन्द्रिय में = ३ समुद्घात (वेदना, कषाय, मरण), परन्तु वायुकाय में वैक्रिय सहित = ४, कारण बादर पर्याप्ता वायुकाय में वैक्रिय लब्धि होती है। पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च में-तैजस सह पूर्वोक्त ४ समुद्घात होते हैं। तिर्यंचों में क्वचित् तेजोलेश्या और वैक्रियलब्धि होती है। मनुष्य में = ७ समुद्घात (वेदना, कषाय, मरण, तैजस्, वैक्रिय, आहारक और केवली) है। व्यंतर, ज्योतिष् और वैमानिक में-५ समुद्घात होते हैं (वेदना, कषाय, मरण, तैजस् और वैक्रिय), आहारक और केवली समुद्घात नहीं होते ॥१३११-१६ ॥ २३२ द्वार: पर्याप्ति आहार सरीरिंदिय पज्जत्ती आणपाण भास मणे । चत्तारि पंच छप्पिय एगिंदियविगलसन्नीणं ॥१३१७ ॥ पढमा समयपमाणा सेसा अंतोमुहुत्तिया य कमा। समगंपि हुंति नवरं पंचम छट्ठा य अमरणं ॥१३१८ ॥ -गाथार्थपर्याप्ति छ:-१. आहार २. शरीर ३. इन्द्रिय ४. श्वासोच्छ्वास ५. भाषा और ६. मन - ये छ: पर्याप्तियाँ हैं। इनमें से एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय और संज्ञी पञ्चेन्द्रिय के क्रमश: चार, पाँच और छ: पर्याप्तियाँ होती हैं ।।१३१७ ।। प्रथम पर्याप्ति का कालमान एक समय एवं शेष पर्याप्तियों का क्रमश: पृथक्-पृथक् अन्तर्मुहूर्त का है। परन्तु देवों की पाँचवीं और छट्ठी पर्याप्ति साथ ही पूर्ण होती है ॥१३१८ ॥ -विवेचनपर्याप्ति = आहार आदि के पुद्गलों को ग्रहण करके उन्हें आहार, खल, रस आदि के रूप में परिणत करने की आत्मिक शक्ति विशेष । वह शक्ति पुद्गल के उपचय से उत्पन्न होती है। सारांश यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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