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________________ ३१२ केवली और आहारक को छोड़कर एकेन्द्रिय जीवों में शेष पाँच समुद्घात होते हैं । वैक्रिय को छोड़कर पाँच में से शेष चार समुद्घात विकलेन्द्रिय और असंज्ञी होते हैं ।। १३१२ ।। केवली समुद्घात में प्रथम समय दंड, द्वितीय समय में कपाद, तृतीय समय में मन्थान की रचना होती है । चतुर्थ समय में लोक को भरते हैं। पाँचवें समय में अन्तर - प्रदेशों का संहरण होता है । छट्टे समय में मंथान का संहरण करते हैं। सातवें समय में कपाट का और आठवें समय में दंड का संहरण होता है । केवल समुद्घात के प्रथम और अन्तिम समय में आत्मा औदारिक शरीरी होता है । द्वितीय समय में औदारिक मिश्र शरीरी, चौथे, पाँचवे और तीसरे समय में कार्मणशरीरी होता है। आत्मा अणाहारी भी इन्हीं तीन समय में होता है ।। १३१३-१६ ।। -विवेचन समुद्घात = 'समुद्घात' शब्द 'सम् - उत्- घात' इन तीन शब्दों का जोड़ है। सम् = एकरूपता, उत् = प्रबलता, घात = निर्जरा । एकरूपता के कारण प्रबलता से निर्जरा करना समुद्घात है । प्रश्न- एकरूपता किसकी किसके साथ होती है ? उत्तर - वेदना, कषाय आदि के साथ आत्मा की एकरूपता होती है। अर्थात् जब आत्मा वेदना समुद्घात, कषाय समुद्घात आदि करता है तब वेदना और कषाय की अनुभूति के सिवाय अन्य सारी अनुभूतियाँ समाप्त हो जाती हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो आत्मा उस समय वेदनामय व कषायमय हो जाती है । प्रश्न- प्रबलतापूर्वक घात - निर्जरा कैसे होती है ? उत्तर - वेदना आदि समुद्घात में परिणत हुआ जीव, कालान्तर में भोगने योग्य वेदनीय आदि कर्मों के विपुल प्रदेशों को उदीरणा द्वारा खींचकर, उदय में लाकर भोगकर क्षय करता है अर्थात् आत्मप्रदेशों के साथ एकमेक बने कर्म पुद्गलों को अलग करना समुद्घात है । स्वाभाविक रूप में कर्मों का उदय में आना और भोगना, यह कर्मयोग की सहज प्रक्रिया है, किन्तु प्रयासपूर्वक अनुदित कर्मों का उदीरणा द्वारा उदय लाकर भोगना समुद्घात है । वेदना, कषाय आदि का उदय कभी-कभी इतना प्रबल होता है कि उन्हें सहजरूप में भोगना जीव के लिये अशक्य हो जाता है। ऐसी स्थिति में आत्मा अपनी शक्ति से वेदनादि के पुद्गलों को उदीरणा द्वारा खींचकर अतिशीघ्र भोगकर क्षय कर देता है। कर्मों के निर्जरण की यह प्रक्रिया समुद्घात कहलाती है । जैसे किसी पक्षी के पंख पर बहुत धूल चढ़ जाती है, तब वह पक्षी अपने पंख फैलाकर जोर से फड़फड़ाकर धूल को झाड़ देता है । इसी प्रकार आत्मा बद्ध कर्म पुद्गल को झाड़ने (निर्जरित करने) के लिये समुद्घात नामक क्रिया करता I समुद्घात सात प्रकार के हैं (i) वेदना समुद्घात (ii) कषाय समुद्घात (iii) (iv) Jain Education International द्वार २३१ मरण समुद्घात वैक्रिय समुद्घात (v) (vi) (vii) तैजस् समुद्घात आहारक समुद्घात केवली समुद्घात For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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