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प्रवचन-सारोद्धार
३११
-गाथार्थनरक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देवों का वैक्रिय कालमान-नारकों का उत्कृष्ट वैक्रिय कालमान अन्तर्मुहूर्त का, तिर्यञ्च और मनुष्यों का चार अन्तर्मुहूर्त का तथा देवों का अर्धमास अर्थात् पन्द्रह दिन का है॥१३१०॥
-विवेचन विकुर्वणाकाल = किस जीव का वैक्रिय शरीर कितने समय तक रहता है, वह कालमर्यादा विकुर्वणाकाल कहलाती है।
(१) तिर्यञ्च और मनुष्य का विकुर्वणाकाल = ४ अन्तर्मुहूर्त है (२) देवता का विकुर्वणाकाल
= १५ दिन का है। (३) नारकों का विकुर्वणाकाल । = १ अन्तर्मुहूर्त का है। यह उत्कृष्ट काल समझना। तत्पश्चात् सभी जीव पुन: अपने भवधारणीय शरीर में आ जाते हैं ।।१३१० ॥
२३१ द्वार:
समुद्घात
वेयण कसाय मरणे वेउव्विय तेयए य आहारे। केवलियसमुग्घाए सत्त इमे हुंति मणुयाणं ॥१३११ ॥ एगिंदीणं केवलिआहारगवज्जिया इमे पंच । पंचावि अवेउव्वा विगलासन्नीण चत्तारि ॥१३१२ ॥ केवलियसमग्घाओ पढमे समयंमि विरयए दंडं। बीए पुणो कवाडं मंथाणं कुणइ तइयंमि ॥१३१३ ॥ लोयं भरइ चउत्थे पंचमए अंतराइं संहरइ। छढे पुण मंथाणं हरइ कवाडंपि सत्तमए ॥१३१४ ॥ अट्ठमए दंडंपि हु उरलंगो पढमचरमसमएसुं। सत्तमछट्ठबिइज्जेसु होइ ओरालमिस्सेसो ॥१३१५ ॥ कम्मणसरीरजोई चउत्थए पंचमे तइज्जे य। जं होइ अणाहारो सो तंमि तिगेऽवि समयाणं ॥१३१६ ॥
-गाथार्थसमुद्घात सात—१. वेदना २. कषाय ३. मरण ४. वैक्रिय ५. तैजस् ६. आहारक और ७. केवली समुद्घात ये सात समुद्घात मनुष्यों में होते हैं ।।१३११ ।।
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