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प्रवचन - सारोद्धार
१. मिथ्यात्व गुणस्थान में २. सासादन गुणस्थान में
३. मिश्र गुणस्थान में
४. अविरत गुणस्थान सम्यक्दृष्टि में देवगति में जाते हैं ।
५ से १४ गुण स्थानों में परलोकगमन नहीं होता है।
इन गुणस्थानकों का सद्भाव विरति के सद्भाव में ही होता है। परलोक जाते समय विरति नहीं होती अत: इन गुणस्थानकों में परलोक गमन नहीं होता है ॥१३०६ ॥
२२९. द्वार :
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-विवेचन
परलोक गमन होता है। यह गुणस्थान सर्वत्र है । परलोक गमन होता है । कहा है- अणुबंधोदयमाउगबंधं कालं च सासणो कुणइ सास्वादानी अनंतानुबंधी कषाय के बंध-उदय व आयु के बंधपूर्वक काल करता है 1
परलोक गमन नहीं होता है ( न सम्ममिच्छो कुणइ कालं) मिश्रगुणस्थानवर्ती जीव भवांतर में नहीं जाता ।
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मिच्छत्तमभव्वाणं अणाइयमणंतयं च विन्नेयं । भव्वाणं तु अणाई सपज्जवसियं च सम्मत्ते ॥१३०७ ॥ छावलियं सासाणं समहियतेत्तीससायर चउत्थं । देसूणपुव्वकोडी पंचमगं तेरसं च पुढो ॥१३०८ ॥ लहुपंचक्खर चरिमं तइयं छट्ठाई बारसं जाव | इह अट्ठ गुणट्ठाणा अंतमुहुत्ता पमाणेणं ॥१३०९ ॥ —गाथार्थ
काल-मान
गुणस्थानकों का कालमान- मिथ्यात्व गुणस्थानक का कालमान अभव्य की अपेक्षा अनादि अनन्त हैं । भव्य की अपेक्षा अनादि सांत तथा सम्यक्त्व से पतित की अपेक्षा सादिसांत हैं।
सास्वादन का कालमान छ आवलिका, अविरतसम्यग्दृष्टि का साधिक तेत्तीस सागरोपम, पाँचवें तथा तेरहवें का पृथक्-पृथक् कालमान देशोन पूर्वक्रोड़ वर्ष, चौदहवें का ह्रस्व पाँच अक्षर उच्चारण कालपरिमाण, तीसरे और छट्टे से बारहवें गुणस्थान पर्यन्त आठ गुणस्थानक का कालमान अन्तर्मुहूर्त का है ।। १३०७-९ ।।
-विवेचन
१. मिथ्यात्व गुणस्थान- काल की अपेक्षा से मिथ्यात्व - गुणस्थान के चार भांगे हैं । (i) अनादि अनंत (ii) अनादि सांत (iii) सादि अनंत (iv) सादि - सान्त
(i) यह भांगा अभव्य की अपेक्षा से समझना । अभव्य जीव अनादि काल से मिथ्यात्वी है और सम्यक्त्व पाने की योग्यता का अभाव होने से अनादि काल पर्यन्त मिथ्यात्वी ही रहते हैं ।
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