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________________ २९२ द्वार २२३-२२४ (ब) देश-स्कंध के बुद्धि कल्पित द्विप्रदेशी, त्रिप्रदेशी यावत् अनन्त प्रदेशी विभाग हैं। यहाँ भी बहुवचन का प्रयोग अनंतप्रदेशी स्कंधों में अनन्त देशों का सद्भाव बताने के लिये है। (स) प्रदेश-स्कंध के बुद्धिकल्पित निर्विभाज्य भाग। (द) परमाणु-स्कंध से पृथक् पड़े हुए निर्विभाज्य भाग। प्रश्न-प्रदेश और परमाणु दोनों ही निर्विभाज्य भागरूप हैं तो दोनों में क्या भेद है ? उत्तर-स्कंध से जुड़े हुए निर्विभाज्य भाग प्रदेश हैं, पर परमाणु, स्कंध से अलग पड़े हुए निर्विभाज्य भाग रूप हैं। (ii) अरूपी-वर्ण, गंध, रस व स्पर्श रहित वस्तु अरूपी है। इसके दश भेद हैं। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय। इन तीनों में से प्रत्येक के स्कंध, देश, प्रदेश के भेद से तीन-तीन भेद होने से कुल ३ x ३ = ९ भेद हुए। धर्मास्तिकाय व अधर्मास्तिकाय दोनों ही असंख्यप्रदेशी द्रव्य हैं पर आकाशास्तिकाय अनन्त प्रदेशवाला है। कालद्रव्य, वर्तमान एक समय रूप होने से इसके कोई भेद नहीं होते। इस प्रकार रूपी के ४ और अरूपी के ९ + काल + १ मिलकर अजीव के चौदह भेद होते हैं ॥१३०१ ॥ २२४ द्वार: गुणस्थान मिच्छे सासण मिस्से अविरय देसे पमत्त अपमत्ते । नियट्टि अनियट्टि सुहुमुवसम खीण सजोगि अजोगि गुणा ॥१३०२ ॥ -गाथार्थगुणस्थानक चौदह-१. मिथ्यात्व २. सास्वादन ३. मिश्र ४. अविरति ५. देशविरति ६. प्रमत्त ७. अप्रमत्त ८. निवृत्ति ९. अनिवृत्तिबादर संपराय १०. सूक्ष्मसंपराय ११. उपशान्तमोह १२. क्षीणमोह १३. सयोगी तथा १४. अयोगी-ये चौदह गुणस्थान हैं ॥१३०२ ।। -विवेचन १. मिथ्यादृष्टि ८. अपूर्व-करण २. सास्वादन सम्यग्दृष्टि ९. अनिवृत्तिकरण ३. सम्यग्-मिथ्यादृष्टि १०. सूक्ष्म-संपराय ४. अविरत सम्यग्दृष्टि ११. उपशान्त कषाय (वीतराग-छद्मस्थ) ५. देशविरति १२. क्षीण कषाय (वीतराग-छद्मस्थ) ६. प्रमत्त संयत १३. सयोगि केवली ७. अप्रमत्त संयत १४. अयोगि केवली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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