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________________ द्वार २१६-२१७ २७४ (ii) सड़सठ प्रकार का = गति ४ + जाति ५ + शरीर ५ + अंगोपांग ३ + संघयण ६ + संस्थान ६ + आनुपूर्वी ४ + विहायोगति २ + प्रत्येक ८ + वर्णादि ४ + त्रस १० + स्थावर १० = ६७ प्रकृति । बंधन और संघातन का शरीर में अन्तर्भाव करने से ६७ प्रकृतियाँ होती हैं। ये बंध-उदय में उपयोगी बनती हैं ॥१२६७-१२७१ ॥ (ii) १०३ प्रकार का-पूर्वोक्त ६७ प्रकृतियों में वर्णादि ४ निकालकर वर्ण ५ + २ गंध + ५ रस + ८ स्पर्श + १५ बंधन + ५ संघातन मिलाने से = १०३ प्रकृतियाँ होती हैं। ये प्रकृतियाँ सत्ता में उपयोगी हैं ॥१२७२-७५ ॥ २१७ द्वार: बंधादि-स्वरूप सत्तट्ठछेगबंधा संतुदया अट्ठ सत्त चत्तारि । सत्तट्ठछपंचदुगं उदीरणाठाणसंखेयं ॥१२७६ ॥ बंधेऽट्ठसत्तऽणाउग छविहममोहाउ इगविहं सायं । संतोदएसु अट्ठ उ सत्त अमोहा चउ अघाई ॥१२७७ ॥ अट्ठ उदीरइ सत्त उ अणाउ छव्विहमवेयणीआऊ। पण अवियणमोहाउग अकसाई नाम गोत्तदुगं ॥१२७८ ॥ बंधे वीसुत्तरसय सयबावीसं तु होइ उदयंमि। उदीरणाए एवं अडयालसयं तु सन्तंमि ॥१२७९ ॥ -गाथार्थबंध-उदय-उदीरणा और सत्ता का स्वरूप-सात, आठ, छ: और एक प्रकृति का बंधस्थानक, आठ, सात और चार प्रकृति का उदय और सत्ता स्थानक, सात, आठ, छ:, पाँच और दो प्रकृति का उदीरणा स्थानक है। इस प्रकार बंधादि की संख्या समझना चाहिये ॥१२७६ ।। बंध में आयु सहित आठ का एवं आयु रहित सात का बंध है। मोह एवं आयु रहित छ: का बंध है। मात्र सातारूप एक का बंध है। सत्ता में एवं उदय में आठ, आयु रहित सात, वेदनीय और आयु बिना छ:, मोहनीय, वेदनीय और आयु बिना पाँच एवं अकषायी को मात्र नाम एवं गोत्र दो की ही उदीरणा होती है ।।१२७७-७८ ॥ बंध में एक सौ बीस, उदय और उदीरणा में एक सौ बावीस एवं सत्ता में एक सौ अड़तालीस प्रकृतियाँ हैं ।।१२७९ ।। -विवेचनबंध—यह लोक काजल से भरे हुए डिब्बे की तरह पुद्गल समूह से ठसाठस भरा हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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