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प्रवचन-सारोद्धार
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(i) औत्पातिकी मति
- प्रसंग आने पर उभयलोक हितकारी कार्य-सिद्ध करने में समर्थ
सहसा उत्पन्न मति । (ii) वैनयिकी मति - गुरुओं का विनय करने से प्राप्त, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का
विवेक करने में निपुण उभय लोक हितकारी मति, वैनयिकी है। (iii) कार्मिकी मति - अभ्यास करते....करते प्राप्त होने वाली बुद्धि। (iv) पारिणामिकी मति - उम्र जन्य अनुभवों से विकसित बुद्धि ।
पूर्वोक्त श्रुतनिश्रित मतिज्ञान के २८ भेद में ४ भेद अश्रुतनिश्रित मतिज्ञान के मिलाने पर मतिज्ञान के कुल भेद २८ + ४ = ३२ होते हैं।
जातिस्मरणज्ञान-जिस ज्ञान के द्वारा भूतकालीन भवों का स्मरण होता है। इसके द्वारा १-२-३ यावत् संख्याता भव का स्मरण होता है। यह मतिज्ञान का ही एक प्रकार है। आचारांग में कहा है-“जातिस्मरणं त्वाभिनिबोधिकं” । जातिस्मरण भी आभिनिबोधिक विशेष अर्थात् मतिज्ञान रूप ही है।
पूर्वोक्त भेद सहित ‘मतिज्ञान' का आवरणीय कर्म, मतिज्ञानावरण कहलाता है।
(२) श्रुतज्ञानावरण–पढ़ने या सुनने से जो अर्थज्ञान होता है, वह श्रुतज्ञान है अर्थात् वाच्य-वाचक भाव के ज्ञानपूर्वक शब्द से संबद्ध अर्थबोध का हेतुभूत क्षयोपशमविशेष श्रुतज्ञान है। इस प्रकार के आकार-प्रकार वाली वस्तु 'घट' शब्द से वाच्य है और वह जल धारण आदि क्रिया करने में समर्थ है। इस प्रकार शब्दार्थ की प्रधानतापूर्वक इन्द्रिय और मन द्वारा होने वाला ज्ञानविशेष श्रुतज्ञान है । श्रुतरूप जो ज्ञान श्रुतज्ञान है। इसके भेद नन्दीसूत्र आदि से जानना चाहिये। श्रुतज्ञान के १४ भेद अक्षर श्रुत
८. अनादि श्रुत अनक्षर श्रुत
९. सपर्यवसित श्रुत संज्ञी श्रुत
१०. अपर्यवसित श्रुत असंज्ञी श्रुत
११. गमिक श्रुत __ सम्यक् श्रुत
१२. अगमिक श्रुत ६. मिथ्या श्रुत
१३. अंगप्रविष्ट श्रुत सादि श्रुत
१४. अनंगप्रविष्ट श्रुत श्रुतज्ञान के २० भेद पर्याय श्रुत
पद समास श्रुत २. . पर्याय समास श्रुत
संघात श्रुत ३. अक्षर श्रुत
संघात समास श्रुत अक्षर समास श्रुत
प्रतिपत्ति पद श्रुत
१०. प्रतिपत्ति समास श्रुत
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