SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १० १२१ द्वार : Jain Education International अट्ठा गट्ठा हिंसाऽकम्हा दिट्ठी य मोसऽदिन्ने य। अज्झप्प माण मित्ते माया लोभेरियावहिया ॥ ८१८ ॥ तसथावरभूएहिं जो दंड निसरई उ कज्जेणं । आयपरस्स व अट्ठा अट्ठादंडं तयं बिंति ॥ ८१९ ॥ जो पुण सरडाईयं थावरकायं व वणलयाईयं । मारेइ छिंदिऊण व छड्डेई सो अट्ठाए ||८२० ॥ अहिमाइवइरियस्स व हिंसिसुं हिंसई व हिंसेही | जो दंडं आरभई हिंसादंडो हवइ एसो ॥ ८२१ ॥ अन्नट्ठाए निसिरइ कंडाई अन्नमाहणे जो उ । जो व नियंतो सस्सं छिंदिज्जा सालिमाईयं ॥८२२ ॥ एस अकम्हादंडो दिट्ठिविवज्जासओ इमो होइ । जो मित्तममित्तंति य काउं घाएज्ज अहवावि ॥८२३ ॥ गामाई घाज्ज व अतेण तेणत्ति वावि घाएज्जा । दिट्ठविवज्जासेसो किरियाठाणं तु पंचमयं ॥८२४ ॥ अत्तट्ठनायगाईण वावि अट्ठाइ जो मुसं वयइ । सो मोसप्पच्चइओ दंडो छट्ठो हवइ एसो ॥८२५ ॥ एमेव आयनायगअट्ठा जो गिन्हई अदिन्नं तु । एसो अदिन्नवत्ती अज्झत्थीओ इमो होइ ॥ ८२६ ॥ नवि कोइ य किंचि भणइ तहवि हु हियएण दुम्मणो किंचि । तस्सऽज्झत्थी सीसइ चउरो ठाणा इमे तस्स ॥८२७ ॥ कोहो माणो माया लोभो अज्झत्थकिरियए चेव । जो पुण जाइमयाई अट्ठविहेणं तु माणेणं ॥८२८ ॥ मत्तो होलेइ परं खिसइ परिभवई माणवच्चेया । For Private & Personal Use Only द्वार १२१ क्रियास्थान १३ www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy