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प्रवचन-सारोद्धार
सिरिअम्मएवमुणिवइ विणेयसिरिनेमिचंदसूरीहिं । सपरहियत्थं रइयं कुलयमिणं जीवसंखाए ॥१२४८ ॥
-गाथार्थजीव संख्या कुलक—नेमिनाथ परमात्मा को नमस्कार करके एकविध, द्विविध आदि जीवों की संख्या सिद्धान्त के अनुसार कहूँगा। जीव का एक प्रकार चेतना लक्षण है। संसारी और सिद्ध के भेद से जीव, द्विविध हैं ।।१२३२ ।।
त्रस और स्थावर के भेद से संसारी जीवों के दो भेद हैं। स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसक के भेद से त्रिविध जीव हैं। नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव गति के भेद से जीव चतुर्विध हैं ।।१२३३ ।।
अथवा तीन वेद वाले और अवेदी इस प्रकार से भी चतुर्विध है। एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय एवं पञ्चेन्द्रिय के भेद से जीव पंचविध हैं ।।१२३४ ॥
पूर्वोक्त पंचविध जीवभेद के साथ एक भेद अनीन्द्रिय का जोड़ने से षड्विध जीव होते हैं। अथवा जीव के छ: भेद इस प्रकार भी होते हैं-पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, वनस्पति एवं प्रस। इनके साथ 'अकाय' जोड़ने से सात प्रकार के जीव होते हैं ।।१२३५ ।।
अंडज, रसज, जरायुज, संस्वेदज, पोतज, संमूर्च्छिम, उद्भिज तथा औपपातिक इस प्रकार अष्टविध जीव भेद हैं ॥१२३६ ।।
पृश्चिकाय आदि पाँच जीव भेदों के साथ द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय एवं पंचेन्द्रिय-इन चार जीव-भेदों को जोड़ने से नवविध जीव होते हैं ॥१२३७ ।।
___पाँच स्थावर और तीन विकलेन्द्रिय-इन आठ जीव भेदों के साथ पंचेन्द्रिय के संज्ञी और असंज्ञी दो जीव भेद जोड़ने से दश प्रकार के जीव होते हैं। पूर्वोक्त दश भेद सिद्ध सहित ग्यारह होते हैं। पृथ्वी आदि छ: काय के पर्याप्ता और अपर्याप्ता मिलकर कुल बारह प्रकार के जीव होते हैं ॥१२३८ ॥
पूर्वोक्त बारह जीव भेद के साथ 'अशरीरी' जोड़ने से तेरह जीव के भेद होते हैं। सूक्ष्म-बादर एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय आदि तीन तथा संज्ञी-असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय इन सातों के पर्याप्ता और अपर्याप्ता मिलकर कुल चौदह जीव भेद हुए ॥१२३९ ।।
पूर्वोक्त चौदह जीव भेदों के साथ सिद्ध को मिलाने से पन्द्रह जीव भेद होते हैं। अंडज आदि आठ जीव भेदों के पर्याप्ता और अपर्याप्ता दो-दो जीवभेद करने से कुल सोलह जीवभेद होते हैं।॥१२४०।।
पूर्वोक्त सोलह भेद में 'अशरीरी' जोड़ने से सत्रह जीव भेद होते हैं। पूर्वोक्त नपुंसकादि नौ भेद के पर्याप्ता और अपर्याप्ता मिलकर अट्ठारह जीवभेद और इनमें सिद्ध का एक भेद जोड़ने से कुल उन्नीस जीव भेद होते हैं ॥१२४१ ।।।। ____ पृथ्विकाय आदि दस जीवों के पर्याप्ता और अपर्याप्ता बीस जीव भेद हुए। इनके साथ सिद्ध का एक भेद जोड़ने से इक्कीस जीवभेद होते हैं ॥१२४२॥
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