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________________ २२२ द्वार २०५-२०६ सौमनस् प्रीतिकर आदित्य ५ अनुत्तर एकेन्द्रिय विकलेन्द्रिय पंचेन्द्रियतिर्यंच-मनुष्य नारक २९ सागरोपम ३० सागरोपम ३१ सागरोपम ३३ सागरोपम द्वार १८६ में देखें २९ हजार वर्ष के बाद ३० हजार वर्ष के बाद ३१ हजार वर्ष के बाद ३३ हजार वर्ष के बाद निरन्तर होता है अन्तर्मुहूर्त में २ अहोरात्र ३ अहोरात्र अन्तर्मुहूर्त में २९ पक्ष में ३० पक्ष में ३१ पक्ष में ३३ पक्ष में अनि निरन्तर द्वार १८५ में देखें ॥११८५-८७ ॥ २०६ द्वार : ३६३ पाखंडी असीइसयं किरियाणं अकिरियवाईण होइ चुलसीई। अन्नाणिय सत्तट्ठी वेणइयाणं च बत्तीसं ॥११८८ ॥ जीवाइनवपयाणं अहो ठविज्जंति सयपरयसद्दा। तेसिपि अहो निच्चानिच्चा सद्दा ठविज्जन्ति ॥११८९ ॥ कालस्सहाव नियई ईसर अप्पत्ति पंचवि पयाइं। निच्चानिच्चाणमहो अणुक्कमेणं ठविज्जति ॥११९० ॥ जीवो इह अस्थि सओ निच्चो कालाउ इय पढमभंगो। बीओ य अस्थि जीवो सओ अनिच्चो य कालाओ ॥११९१ ॥ एवं परओऽवि हु दोन्नि भंगया पुव्वदुगजुया चउरो। लद्धा कालेणेवं सहावपमुहावि पाविति ॥११९२ ॥ पंचहिवि चउक्केहिं पत्ता जीवेण वीसई भंगा। एवमजीवाईहिवि य किरियावाई असिइसयं ॥११९३ ॥ इह जीवाइपयाइं पुन्नं पावं विणा ठविज्जन्ति । तेसिमहोभायम्मि ठविज्जए सपरसद्ददुगं ॥११९४ ॥ तस्सवि अहो लिहिज्जइ काल जहिच्छा य पयदुगसमेयं । नियइ-स्सहाव ईसर अप्पत्ति इमं पयचउक्कं ॥११९५ ॥ पढमे भंगे जीवो नत्थि सओ कालओ तयणु बीए। परओऽवि नत्थि जीवो कालाइय भंगगा दोन्नि ॥११९६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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