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________________ प्रवचन-सारोद्धार २१९ जिस देव की जितने सागरोपम की आयु है, वह देव उतने पक्ष के पश्चात् श्वासोच्छ्वास ग्रहण करता है तथा उतने हजार वर्ष के पश्चात् ही आहार ग्रहण करता है ।।११८५ ।। दस हजार वर्ष की जघन्य आयु वाले देव एक अहोरात्रि के पश्चात् आहार ग्रहण करते हैं एवं सात स्तोक के पश्चात् श्वासोच्छ्वास लेते हैं ॥११८६ ॥ एक समय अधिक दश हजार वर्ष से लेकर किंचित् न्यून एक सागरोपम की आयु वाले देवों का आहार एवं श्वासोच्छ्वास क्रमश: दिवस पृथक्त्व तथा मुहूर्त पृथक्त्व से होता है ॥११८७ ।। -विवेचनआहार के तीन प्रकार (i) ओजाहार-जीव पूर्व शरीर का त्याग कर जब उत्पत्ति स्थान में आता है तो वहाँ तैजस् और कार्मण शरीर के द्वारा सर्वप्रथम औदारिकादि शरीर के निर्माण योग्य पुद्गलों को ग्रहण करता है। यह ओज आहार है तथा जब तक शरीर पूरा नहीं बन जाता, तब तक औदारिकमिश्र शरीर के द्वारा शरीर-निर्माण योग्य पुद्गल जीव ग्रहण करता रहता है, यह भी 'ओज आहार' कहलाता है। ओजाहार—तैजस् शरीर द्वारा गृहीत आहार अथवा अपने उत्पत्ति योग्य 'शुक्र मिश्रित शोणित' के पुद्गलों का ग्रहण करना ओजाहार है। 'ओजस्' शब्द में 'स्' का लोप हो जाने के कारण ‘ओजाहार' शब्द बनता है। (ii) लोम आहार-स्पर्शेन्द्रिय के द्वारा शरीर के उपष्टंभक पुद्गलों का ग्रहण करना। जैसे, सर्दी और वर्षा के समय शीत जलादि के पुद्गलों को रोम-छिद्रों द्वारा ग्रहण करना लोम आहार है। शिशिर और वर्षा ऋतु में शीत और जलादि के पुद्गल रोम-छिद्रों के द्वारा प्रवेश करते रहते हैं। यही कारण है कि उस काल में मूत्र अधिक आता है। (iii) कवलाहार-जो मुँह में ग्रास के रूप में डाला जाता है, इसे प्रक्षेपाहार भी कहते हैं। किस अवस्था में कैसा आहार ? १. ओज आहार—एकेन्द्रिय से लेकर कवलाहार जीवों के सदा नहीं होता। जब मुँह | पंचेन्द्रिय पर्यन्त सभी अपर्याप्त जीवों में। में कवल डालते हैं, तभी कवलाहार होता है। २. लोम-आहार–सभी पर्याप्ता जीवों में। जबकि ‘लोमाहार' सदा होता है, कारण रोम-छिद्रों के द्वारा वायु के पुद्गल सदा भीतर प्रवेश पाते ३. कवलाहार—देवता, नारकी और एकेन्द्रिय | रहते हैं। गर्मी से सन्तप्त व्यक्ति को, शीतल वायु के सिवाय सभी जीवों में । से या पानी छाँटने से जो तृप्ति होती है, यह लोम-आहार का सूचक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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