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________________ २१० द्वार १९८ नाम -विवेचन ऊर्ध्व लोक सम्बन्धी अधोलोक सम्बन्धी | तिर्यक् लोक सम्बन्धी | अवधि-ज्ञान अवधि-ज्ञान । अवधि-ज्ञान स्वविमान की ध्वजा रत्नप्रभा के तल तक असंख्याता द्वीप समद्र स्वविमान की ध्वजा शर्कराप्रभा के तल तक | असंख्याता द्वीप समद्र स्वविमान की ध्वजा असंख्याता द्वीप समुद्र स्वविमान की ध्वजा पंकप्रभा के तल तक । असंख्याता द्वीप समुद्र १. सौधर्मेन्द्र, ईशानेन्द्र तथा उत्कृष्टायुषी सामानिक देव २. सनत्कुमारेन्द्र महेन्द्र तथा उत्कृष्टायुषी सामानिक देव ३. ब्रह्मेन्द्र, लान्तकेन्द्र तथा उत्कृष्टायुषी सामानिक देव ४. शुक्रेन्द्र, सहस्रारेन्द्र तथा उत्कृष्टायुषी सामानिक देव ५. आनत, प्राणत तथा उत्कृष्टायुषी सामानिक देव ६. आरण, अच्युत तथा उत्कृष्टायुषी सामानिक देव ७. ग्रैवेयक प्रथम त्रिक व द्वितीय त्रिक ८. तृतीय त्रिक ९. पाँच अनुत्तर स्वविमान की ध्वजा धूम्रप्रभा के तल तक असंख्याता द्वीप समुद्र स्वविमान की ध्वजा स्वविमान की ध्वजा स्वविमान की ध्वजा स्वविमान की ध्वजा स्वविमान की ध्वजा | धूम्रप्रभा के तल तक पूर्व | असंख्याता द्वीप समुद्र की अपेक्षा कुछ विशुद्ध | तम प्रभा के तल तक पूर्व | असंख्याता द्वीप समुद्र | की अपेक्षा कुछ विशुद्ध | तमस्तमप्रभा के तल तक असंख्याता द्वीप समुद्र लोकनालिका के अंत तक | स्वयंभूरमण समुद्र तक • तत्त्वार्थभाष्य में ऐसा कहा है। पर कुछ आचार्यों का मानना है कि-अनुत्तरविमानवासी देव ऊर्ध्वलोक में अपने विमान की ध्वजा नहीं देख सकते अत: वे नीचे संपूर्ण लोक नाड़ी को भी नहीं देखते, पर कुछ न्यून देखते हैं। • पूर्ववर्ती देवताओं की अपेक्षा उत्तरवर्ती देवताओं का अवधिज्ञान विमल...विमलतर होता है। • पूर्व की अपेक्षा उत्तरवर्ती देवों का अवधिज्ञान विशुद्धता व पर्याय की दृष्टि से अधिक होता है। अत: पूर्ववर्ती देवों की अपेक्षा से उनमें अधिक देखने की शक्ति होती है। • पूर्वोक्त सभी देव जघन्य से अङ्गुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्र को देखते हैं। आवश्यकचूर्णि में कहा है कि सौधर्म देवलोक से लेकर अनुत्तर विमान तक के देव अङ्गल के असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्र को ही देखते व जानते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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