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द्वार १९४
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यद्यपि सूर्य-चन्द्र असंख्याता हैं, तथापि सजातीय होने से ज्योतिष् देवों के दो ही इन्द्र होते हैं-चन्द्र और सूर्य ।
वैमानिक इसके दो भेद हैं(i) कल्पोपपन्न
- कल्प अर्थात् आचार, जहाँ इन्द्र, सामानिक, त्रायस्त्रिंश आदि की
व्यवस्था हो। वे बारह हैं। • पहले देवलोक से १२वें देवलोक तक के देव कल्पोपपन्न कहलाते हैं। (ii) कल्पातीत
- जिनमें पूर्वोक्त व्यवहार (सेव्य-सेवक भाव) नहीं होता किन्तु सभी
देव समान होते हैं वे कल्पातीत है। • नवग्रैवेयक और पाँच अनुत्तर वासी देव कल्पातीत कहलाते हैं । ग्रीवायाँ भवानि = ग्रैवेयकानि' • अनुत्तर-जिनसे श्रेष्ठ अन्य कोई विमान नहीं है, वे अनुत्तर कहलाते हैं। (न विद्यन्ते उत्तराणि प्रधानानि विमानानि येभ्यस्तानि =अनुत्तराणि) - देवलोक १२ + ग्रैवेयक ९ + अनुत्तर ५ = २६ वैमानिक हैं। १२ देवलोक उत्कृष्ट स्थिति
जघन्य स्थिति सौधर्म २ सागरोपम
१ पल्योपम (ii) ईशान २ सागरोपम अधिक
साधिक पल्योपम (iii) सनत्कुमार ७ सागरोपम
२ सागरोपम (iv) महेन्द्र ७ सागरोपम
२ सागरोपम (v) ब्रह्मलोक १० सागरोपम
७ सागरोपम (vi) लान्तक १४ सागरोपम
१० सागरोपम (vii) महाशुक्र १७ सागरोपम
१४ सागरोपम (viii) HEER १८ सागरोपम
१७ सागरोपम (ix) आनत १९ सागरोपम
१८ सागरोपम प्राणत २० सागरोपम
१९ सागरोपम (xi) आरण्य २१ सागरोपम
२० सागरोपम (xii) अच्युत २२ सागरोपम
२१ सागरोपम ९ ग्रैवेयक देवस्थिति उत्कृष्ट
देवस्थिति जघन्य (i) सुदर्शन २३ सागरोपम
२२ सागरोपम (ii) सुप्रबुद्ध २४ सागरोपम
२३ सागरोपम (iii) मनोरम २५ सागरोपम
२४ सागरोपम (iv) विशाल २६ सागरोपम
२५ सागरोपम सर्वतोभद्र २७ सागरोपम
२६ सागरोपम
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