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५. एकेन्द्रिय में एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, संख्याता वर्ष की आयुष्य वाले पञ्चेन्द्रिय मनुष्य व तिर्यंच और ईशान देवलोक तक के देवता उत्पन्न होते हैं। (देवता तेउ वाउ को छोड़कर मात्र बादर पर्याप्ता, पृथ्वी, अप् और वनस्पति में ही उत्पन्न होते हैं (तथा स्वभाव से) ।
द्वार ९९१-१९३
६. संख्याता वर्ष की आयु वाले गर्भज पर्याप्ता मनुष्य में नारक, देव अयुगलिक मनुष्य व तिर्यंच उत्पन्न होते हैं। सातवीं नरक के नारक तथा तेडकाय के जीवों को छोड़कर समझना चाहिये ।
७. संख्याता आयुष्य वाले गर्भज पर्याप्ता तिर्यंच में देवता, नारकी और अयुगलिक नर तिर्यच आते हैं (देवता ८वें देवलोक तक ही लेना) ॥ ११२१-२३ ॥
१९२१९३ द्वार :
विरहकाल - संख्या
भिन्नमुहूतो विगलेंदियाण संमुच्छिमाण य तहेव । बारस मुहुत्त गब् सव्वेसु जहन्नओ समओ ॥ ११२४ ॥ उव्वट्टणावि एवं संखा समएण सुरवरुत्तुल्ला । नरतिरियसंख सव्वेसु जंति सुरनारया गब्भे ॥११२५ ॥ बारस मुहुत्त गब्भे मुहुत्त सम्मुच्छिमेसु चउवीसं । उक्कोस विरहकालो दोसुवि य जहन्नओ समओ ॥११२६ ॥ एमेव य उव्वट्टणसंखा समएण सुरवरुत्तुल्ला । मणुए उववज्जेऽसंखाउय मोत्तु सेसाओ ॥ ११२७ ॥
-गाथार्थ
उत्त्पत्ति-मरण का विरहकाल एवं संख्या - विकलेन्द्रिय तथा संमूर्च्छिम पञ्चेन्द्रिय की उत्त्पत्ति का उत्कृष्ट विरहकाल अन्तर्मुहूर्त का है । गर्भज पञ्चेन्द्रिय की उत्पत्ति का उत्कृष्ट विरहकाल बारह मुहूर्त्त का है। पूर्वोक्त सभी का जघन्य विरहकाल एक समय का है ।। ११२४ ।।
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मरण का विरहकाल उपपात के विरहकाल के तुल्य समझना। इनकी संख्या देवतुल्य समझना । संख्याता वर्ष की आयु वाले मनुष्य और तिर्यंच सभी गतियों में जाते हैं। देव और नारक गर्भज में उत्पन्न होते हैं ॥ ११२५ ।।
गर्भज मनुष्य एवं संमूर्च्छिम मनुष्य का उत्कृष्ट विरहकाल क्रमश: बारह मुहूर्त तथा चौबीस मुहूर्त का है। दोनों का जघन्य विरहकाल एक समय का है। पूर्वोक्त जीवों की एक समय में उत्पत्ति - मरण की संख्या देवों के तुल्य समझना । असंख्यवर्ष की आयु वालों को छोड़कर शेष सभी जीव मनुष्य में उत्पन्न होते हैं ।। ११२६-२७ ।।
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