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________________ १९४ ५. एकेन्द्रिय में एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, संख्याता वर्ष की आयुष्य वाले पञ्चेन्द्रिय मनुष्य व तिर्यंच और ईशान देवलोक तक के देवता उत्पन्न होते हैं। (देवता तेउ वाउ को छोड़कर मात्र बादर पर्याप्ता, पृथ्वी, अप् और वनस्पति में ही उत्पन्न होते हैं (तथा स्वभाव से) । द्वार ९९१-१९३ ६. संख्याता वर्ष की आयु वाले गर्भज पर्याप्ता मनुष्य में नारक, देव अयुगलिक मनुष्य व तिर्यंच उत्पन्न होते हैं। सातवीं नरक के नारक तथा तेडकाय के जीवों को छोड़कर समझना चाहिये । ७. संख्याता आयुष्य वाले गर्भज पर्याप्ता तिर्यंच में देवता, नारकी और अयुगलिक नर तिर्यच आते हैं (देवता ८वें देवलोक तक ही लेना) ॥ ११२१-२३ ॥ १९२१९३ द्वार : विरहकाल - संख्या भिन्नमुहूतो विगलेंदियाण संमुच्छिमाण य तहेव । बारस मुहुत्त गब् सव्वेसु जहन्नओ समओ ॥ ११२४ ॥ उव्वट्टणावि एवं संखा समएण सुरवरुत्तुल्ला । नरतिरियसंख सव्वेसु जंति सुरनारया गब्भे ॥११२५ ॥ बारस मुहुत्त गब्भे मुहुत्त सम्मुच्छिमेसु चउवीसं । उक्कोस विरहकालो दोसुवि य जहन्नओ समओ ॥११२६ ॥ एमेव य उव्वट्टणसंखा समएण सुरवरुत्तुल्ला । मणुए उववज्जेऽसंखाउय मोत्तु सेसाओ ॥ ११२७ ॥ -गाथार्थ उत्त्पत्ति-मरण का विरहकाल एवं संख्या - विकलेन्द्रिय तथा संमूर्च्छिम पञ्चेन्द्रिय की उत्त्पत्ति का उत्कृष्ट विरहकाल अन्तर्मुहूर्त का है । गर्भज पञ्चेन्द्रिय की उत्पत्ति का उत्कृष्ट विरहकाल बारह मुहूर्त्त का है। पूर्वोक्त सभी का जघन्य विरहकाल एक समय का है ।। ११२४ ।। Jain Education International मरण का विरहकाल उपपात के विरहकाल के तुल्य समझना। इनकी संख्या देवतुल्य समझना । संख्याता वर्ष की आयु वाले मनुष्य और तिर्यंच सभी गतियों में जाते हैं। देव और नारक गर्भज में उत्पन्न होते हैं ॥ ११२५ ।। गर्भज मनुष्य एवं संमूर्च्छिम मनुष्य का उत्कृष्ट विरहकाल क्रमश: बारह मुहूर्त तथा चौबीस मुहूर्त का है। दोनों का जघन्य विरहकाल एक समय का है। पूर्वोक्त जीवों की एक समय में उत्पत्ति - मरण की संख्या देवों के तुल्य समझना । असंख्यवर्ष की आयु वालों को छोड़कर शेष सभी जीव मनुष्य में उत्पन्न होते हैं ।। ११२६-२७ ।। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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