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________________ १८६ १. स्पर्शनेन्द्रिय २. रसनेन्द्रिय ३. प्राणेन्द्रिय ४. चक्षुरिन्द्रिय ५. श्रोत्रेन्द्रिय इन्द्रिय के दो भेद हैं१. द्रव्येन्द्रिय २. भावेन्द्रिय (ii) आभ्यंतर निर्वृत्ति — द्रव्येन्द्रिय के दो भेद हैं- निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रिय और उपकरण द्रव्येन्द्रिय । इन्द्रिय की आकार रचना को निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रिय कहते हैं। आकार भी दो प्रकार के हैं- (i) बाह्य और (ii) आभ्यंतर (i) बाह्य निर्वृत्ति - - त्वचा । जिस इन्द्रिय से स्पर्श का ज्ञान होता है वह स्पर्शन- इन्द्रियजिस इन्द्रिय से रस का ज्ञान होता है वह है रसन- इन्द्रिय- जीभ । जिस इन्द्रिय से गंध का ज्ञान होता है वह है घ्राण - इन्द्रिय- नाक । जिस इन्द्रिय से रूप का ज्ञान होता है वह है चक्षु - इन्द्रिय- आँख । जिस इन्द्रिय से शब्द का ज्ञान होता है वह है श्रोत्र - इन्द्रिय-कान | Jain Education International द्वार १८८ नाक, कान आदि इन्द्रियों की बाहरी और भीतरी पौगलिक रचना ( आकार विशेष) को द्रव्येन्द्रिय कहते हैं । 1 आत्मा के क्षयोपशम विशेष को भावेन्द्रिय कहते हैं । • श्रोत्रेन्द्रिय का आभ्यंतर आकार कदंब के फूल जैसा है । • चक्षुरिन्द्रिय का मसूर की दाल जैसा है । • घ्राणेन्द्रिय का अतिमुक्तक पुष्प जैसा है। आँख, कान आदि इन्द्रियों का बाह्य आकार । भिन-भिन्न जीवों की अपेक्षा इन्द्रियों का आकार भिन्न-भिन्न होता है । उदाहरणार्थ मनुष्य के कान लंबे - गोल व सीपं के आकार के होते हैं । किन्तु घोड़े के कान नीचे से चौड़े और ऊपर की ओर जाते-जाते एकदम पतले व तीखे होते हैं । आँख, कान आदि इन्द्रियों के बाह्य आकारों के भीतर में स्थित, स्वच्छतर पुद्गलों की रचना । इन्द्रियों का आभ्यंतर आकार निम्न है । जैसे • रसनेन्द्रिय का खुरपे जैसा है। • स्पर्शनेन्द्रिय का आकार अनेक प्रकार का होता है क्योंकि जीवों के शरीर का आकार अलग-अलग है । यही कारण है कि स्पर्शन- इन्द्रिय के बाह्य- आभ्यंतर दो भेद नहीं होते क्योंकि उसका आभ्यंतर आकार, बाह्य आकार के समान ही होता है । (२) उपकरण द्रव्येन्द्रिय आभ्यंतर निर्वृत्ति के भीतर रहने वाली अपने-अपने विषय की ग्राहक पौगलिक शक्ति विशेष उपकरण द्रव्येन्द्रिय है । प्रश्न- आभ्यंतर निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रिय और उपकरण द्रव्येन्द्रिय में क्या भेद है । उत्तर - आभ्यंतर निर्वृत्ति है इन्द्रियों की भीतरी पौगलिक संरचना और उपकरण है उसके भीतर विद्यमान अपने-अपने विषयों को ग्रहण करने वाली पौगलिक शक्ति । वात, पित्त आदि से उपकरण For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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