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________________ द्वार १८० १७४ १८० द्वार: परमाधामी अंबे अंबरिसी चेव, सामे य सबलेइ य। रूद्दो वरुद्द काले य महाकालित्ति आवरे ॥१०८५ ॥ असिपत्ते धणू कुंभे वालू वेयरणी इय। खरस्सरे महाघोसे पन्नरस परमाहम्मिया ॥१०८६ ॥ -गाथार्थपरमाधामी–१. अंब २. अंबरीष ३. श्याम ४. शबल ५. रौद्र ६. उपरौद्र ७. काल ८. महाकाल ९. असिपत्र १०. धनु ११. कुंभ १२. वालुक १३. वैतरणी १४. खरस्वर तथा १५. महाघोष-ये पन्द्रह परमाधामी हैं।॥१०८५-८६ ॥ -विवेचनपरमाधामी-संक्लिष्ट परिणामी और अत्यंत अधार्मिक वृत्ति वाले देव विशेष । ये पन्द्रह प्रकार के हैं(i) अम्ब - जो नारकों को आकाश में उछालते हैं। (ii) अम्बरीष - जो नारकों के टुकड़े-टुकड़े करके भट्टी में भंजने लायक बनाते (iii) श्याम शबल (v) रौद्र (vi) उपरौद्र -- जो चाबुक या शस्त्रादि के प्रहार से नारकों के टुकड़े करके इधर-उधर फेंकते हैं और वर्ण से श्याम हैं। - जो नारकों की आंतें, मेद, कलेजा आदि क्रूरतापूर्वक काटते हैं और वर्ण से कर्बुर हैं। - जो भाला, त्रिशूल इत्यादि की नोंक पर नारकों को पिरोते हैं। अतिक्रर होने से इन्हें रौद्र कहा जाता है। - जो नारकों के अंग-उपांग को तोडते-मरोड़ते हैं। वे अत्यन्त रौद्र होने से उपरौद्र कहलाते हैं। - जो नरक के जीवों को हांडी इत्यादि में पकाते हैं एवं वर्ण से काले हैं। - जो नारकों के नरम-नरम मांस को काटकर खाते हैं और वर्ण से अत्यन्त काले हैं। - जो तलवार की धार तुल्य तीक्ष्ण पत्तों वाले वनों की विकुर्वणा (vii) काल (viii) महाकाल (ix) असिपत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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