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________________ प्रवचन-सारोद्धार १६९ ___ --गाथार्थनारकों के उत्पत्ति और च्यवन का विरहकाल–रत्नप्रभा आदि सातों ही नरक में, उत्पत्ति और च्यवन का उत्कृष्ट विरहकाल क्रमश: २४ मुहूर्त, ७ अहोरात्र, १५ दिन, १ मास, २ मास, ४ मास तथा ६ मास का है। जघन्य विरहकाल सर्वत्र एक समय का है। सातों ही नरक में च्यवन-मरण देवों के तुल्य समझना चाहिये ।।१०८१-८२ ।। -विवेचन मनुष्य व तिर्यंचगति से आकर जीव नरक में निरन्तर जन्मते हैं वैसे नरक के जीव निरन्तर मरते हैं, पर यदा-कदा उनके जन्म-मरण का अन्तर भी पड़ता है। वह इस प्रकार है। सामान्य रूप से सातों नरकों का जन्म और मरण का विरह काल-उत्कृष्ट १२ मुहूर्त और जघन्य एक समय है। समवायाँगसूत्र में भी इसी प्रकार कहा है। विशेष रूप से जन्म और मरण का उत्कृष्ट विरह काल निम्न हैरत्नप्रभा २४ मुहूर्त शर्कराप्रभा ७ दिन वालुकाप्रभा १५ दिन पंकप्रभा धूमप्रभा २ महीना तम:प्रभा ४ महीना तमस्तमप्रभा ६ महीना विशेष रूप से सातों नरकों का उपपात और मरण का विरह काल जघन्य एक समय है। एक समय में जन्मने वाले व मरने वाले नारकों की संख्या जघन्य १-२ है तथा उत्कृष्ट संख्याता-असंख्याता है ।।१०८१-८२ ॥ १ महीना १७८ द्वार : लेश्या काऊ काऊ तह काऊनील नीला य नीलकिण्हा य। किण्हा किण्हा य तहा सत्तसु पुढवीसु लेसाओ ॥१०८३ ॥ -गाथार्थनारकों की लेश्या कापोत, कापोत, कापोतनील, नील, नीलकृष्ण, कृष्ण तथा कृष्ण-ये क्रमश: सातों नरक की लेश्यायें हैं ।।१०८३ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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