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________________ प्रवचन-सारोद्धार १६७ ३. वालुकाप्रभा ४. पंकप्रभा ५. धूमप्रभा ६. तम:प्रभा ७. तमस्तमप्रभा ७ सागरोपम १० सागरोपम १७ सागरोपम २२ सागरोपम ३३ सागरोपम ३ सागरोपम ७ सागरोपम १० सागरोपम १७ सागरोपम २२ सागरोपम ॥१०७५-७६ ॥ १७६ द्वार: अवगाहना पढमाए पुढवीए नेरइयाणं तु होइ उच्चत्तं । सत्त धणु तिन्नि रयणी छच्चेव य अंगुला पुण्णा ॥१०७७ ।। सत्तमपुढवीए पुणो पंचेव धणुस्सयाइं तणुमाणं । मज्झिमपुढवीसु पुणो अणेगहा मज्झिमं नेयं ॥१०७८ ॥ जा जम्मि होइ भवधारणिज्ज अवगाहणा य नरएसु । सा दुगुणा बोद्धवा उत्तरवेउब्वि उक्कोसा ॥१०७९ ॥ भवधारणिज्जरूवा उत्तरविउव्विया य नरएसु । ओगाहणा जहन्ना अंगुल अस्संखभागो उ ॥१०८० ॥ __ -गाथार्थनरक के जीवों के शरीर का परिमाण–प्रथम पृथ्वी के नारकों के शरीर की ऊँचाई ७ धनुष, ३ हाथ एवं ६ अंगुल की है। सातवीं पृथ्वी के नारकों के शरीर की उंचाई पाँच सौ धनुष की है। मध्य नरक के जीवों की मध्यम उंचाई अनेक प्रकार की है।॥१०७७-७८ ।। जिस नरक में जितनी भवधारणीय अवगाहना होती है, उससे दोगुनी उस नरक की उत्कृष्ट उत्तरवैक्रिय अवगाहना समझनी चाहिये ॥१०७९ ।। । नरक में भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय शरीर की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग परिमाण है ॥१०८० ॥ -विवेचन अवगाहना = जिसमें जीव रहते हैं। अवगाहना, तनु, शरीर एकार्थक शब्द हैं। अवगाहना के दो भेद हैं-(i) भवधारणीय और (ii) उत्तरवैक्रिय । (i) भवधारणीय—जिस शरीर को जीव जीवन पर्यन्त धारण करता है अर्थात् जन्म से प्राप्त शरीर। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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