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________________ १६६ द्वार १७४-१७५ • मुर्गों की तरह नरक के जीवों को परस्पर लड़ाना । • तलवार की धार तुल्य तीक्ष्ण असि पत्रों पर उन्हें चलाना। • वैतरणी नदी में उन्हें तिराना। • जब परमाधामी कुंभी में डालकर नरक के जीवों को पकाते हैं, तब वे जीव दारुण वेदना के कारण पाँच सौ योजन ऊपर तक उछलते है और गिरते हैं। उस समय अपने द्वारा विकर्वित व्याघ, सिंह द्वारा उन्हें मरवाना । जीवाभिगम में कहा है कि विभिन्न वेदनाओं से घिरे हुए, दुःखार्त्त नरक के जीव उत्कृष्टत: ऊपर ५०० योजन तक उछलते हैं। नीचे गिरते समय परमाधामियों के द्वारा विकुर्वित, वज्रमुखी पक्षी चोंच द्वारा उन्हें टांच देते हैं। जब वे जमीन पर गिरते हैं तो वहाँ व्याघ्र आदि हिंसक पशु उन्हें फाड़ डालते हैं ॥१०७४ ॥ १७५ द्वार: नरकायु सागरमेगं तिय सत्त दस य सत्तरस तह य बावीसा । तेत्तीसं जाव ठिई सत्तसु पुढवीसु उक्कोसा ॥१०७५ ॥ जा पढमाए जेट्ठा सा बीयाए कणिट्ठिया भणिया। तरतमजोगो एसो दसवाससहस्स रयणाए ॥१०७६ ॥ -गाथार्थनरक के जीवों की आयु–सातों नरक की उत्कृष्ट आयु क्रमश: १. सागर, ३ सागर, ७ सागर, १० सागर, १७ सागर, २२ सागर तथा ३३ सागर की है।।१०७५ ।। पूर्व नरक का उत्कृष्ट आयु उत्तर नरक का जघन्य आयु होता है। इस प्रकार तरतम योग से रत्नप्रभा का जघन्य आयु दस हजार वर्ष का है ॥१०७६ ॥ -विवेचन• अपनी उत्कृष्ट और जघन्य स्थिति के बीच की स्थिति नरक के जीवों की मध्यम स्थिति होती • सातवीं नरक के काल, महाकाल, महारोर और रोर, इन चारों नरकावासों की जघन्य स्थिति २२ सागर की है। नारकी उत्कृष्ट आयु जघन्य आयु १. रत्नप्रभा १. सागरोपम १०००० वर्ष २. शर्कराप्रभा ३. सागरोपम १ सागरोपम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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