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प्रवचन - सारोद्धार
१७४ द्वार :
सत्तसु खेत्तसहावा अन्नोऽन्नुद्दीरिया य जा छट्ठी ।
तिसु आइमासु वियाणा परमाहम्मियसुरकया य ॥१०७४॥
-गाथार्थ
नरक की वेदना - क्षेत्र स्वभावजन्य वेदना सातों ही नरक में होती है । छट्ठी नरक तक परस्पर कृत वेदना भी होती है तथा प्रथम तीन नरक पर्यन्त परमाधामीकृत वेदना भी होती है ॥ १०७४ ।।
-विवेचन
नरक में तीन प्रकार की वेदना होती है ।
(i) क्षेत्र के प्रभाव से होने वाली वेदना । पहली से सातवीं तक क्षेत्रजन्य वेदना होती है ।
• पहली नरक से तीसरी नरक तक उष्ण वेदना होती है। पहली, दूसरी और तीसरी नरक के नारक शीत-योनि वाले हैं और वहाँ की धरती योनि-स्थान सिवाय सर्वत्र अंगारे की तरह ती हुई होती है।
• पंक- प्रभा के ऊपर वाले नरकावासों में उष्ण वेदना है और नीचे के नरकावासों में शीत वेदना है ।
१. क्षेत्र स्वभावजन्य वेदना के दस प्रकार - (i) उष्ण
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नरक - वेदना
• धूमप्रभा के बहुत से नरकावास शीत- वेदना वाले हैं, और थोड़े उष्ण वेदना वाले हैं । • छट्ठी और सातवीं नरक शीत वेदना वाली है ।
क्षेत्र का स्पर्श योनि स्थान से विपरीत होने के कारण नरक के जीवों को क्षेत्रजन्य वेदना होती है । क्षेत्र स्वभावजा वेदना नीचे की नरकों में तीव्र, तीव्रतर व तीव्रतम होती है 1
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• नरक के जीवों को उष्ण वेदना वाले स्थान से उठाकर यदि जलते हुए अंगारों पर सुला दिया जाये तो उन्हें कुछ शांति का अनुभव होता है और नींद आ जाती है। इससे नरक की उष्ण वेदना का अनुमान लगता है ।
(ii) शीत
पोष, माह की रात्रि में चारों ओर हिमपात हो रहा हो, भयंकर हवा चल रही हो, ऐसे समय में हिमाचल पर्वत की चोटी पर रहे हुए निर्वस्त्र मनुष्य को वहाँ जो शीत वेदना का अनुभव होता
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भयंकर गर्मी में, मध्याह्न काल के समय, चारों ओर जलती हुई अग्नि ज्वालाओं के बीच किसी पित्तरोगी मनुष्य को बिठाने पर उसे जो वेदना होती है, उससे अनन्तगुणी उष्ण वेदना प्रतिपल नरक के जीवों को होती है ।
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