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________________ १४२ द्वार १६० १६० द्वार : | अवसर्पिणी दसकोडाकोडीओ अद्धाअयराण हुंति पुन्नाओ। अवसप्पिणीए तीए भाया छच्चेव कालस्स ॥१०३३ ॥ सुसमसुसमा य सुसमा तइया पुण सुसमदुस्समा होइ। दूसमसुसम चउत्थी दूसम अइदूसमा छट्ठी ॥१०३४ ॥ सुसमसुसमाए कालो चत्तारि हवंति कोडिकोडीओ। तिन्नि सुसमाए कालो दुन्नि भवे सुसमदुसमाए ॥१०३५ ॥ एक्का कोडाकोडी बायालीसाए जा सहस्सेहिं । वासाण होइ ऊणा दूसमसुसमाइ सो कालो ॥१०३६ ॥ अह दूसमाए कालो वाससहस्साई एक्कवीसं तु। तावइओ चेव भवे कालो अइदूसमाएवि ॥१०३७ ॥ -गाथार्थअवसर्पिणी का स्वरूप-दस कोड़ाकोड़ी अद्धा-सूक्ष्मसागरोपम से एक अवसर्पिणी पूर्ण होती है। एक अवसर्पिणी के छ: भाग होते हैं ॥१०३३ ॥ १. सुषम-सुषमा २. सुषमा ३. सुषम-दुःषमा ४. दुःषम-सुषमा ५. दुःषमा तथा ६. अति दुःषमा-ये अवसर्पिणी काल के छ: भाग हैं ।।१०३४॥ सुषमा-सुषमा, चार कोड़ाकोड़ी सूक्ष्म अद्धा-सागरोपम काल परिमाण है। सुषमा तीन कोड़ा-कोड़ी सागर परिमाण है। सुषम-दुःषमा दो कोड़ाकोड़ी सागर का है। दुःषम-सुषमा बयालीस हजार वर्ष न्यून एक कोड़ाकोड़ी सागर परिमाण है। दुःषमा और अतिदुःषमा का काल परिमाण पृथक्-पृथक् इक्कीस हजार वर्ष का है ।।१०३५-१०३७ ॥ -विवेचनअवसर्पिणी = जिसमें आरों का प्रमाण क्रमश: न्यून होता जाता है अथवा जिस काल में जीवों के आयु, शरीर, बल आदि भावों का ह्रास होता जाता है वह अवसर्पिणी काल है। अतर = जिसका पार पाना अशक्य है वह अतर-सागरोपम । दस कोटा-कोटी सूक्ष्म अद्धा सागरोपम की एक अवसर्पिणी होती है। एक अवसर्पिणी के छ: काल खंड है। जिनके लिये शास्त्रों में 'आरा' शब्द का प्रयोग हुआ है। १. सुषम-सुषमा-एकान्त सुखरूप काल । इसका कालप्रमाण चार कोड़ाकोड़ी सागरोपम है। इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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