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________________ १४० द्वार १५८-१५९ अनुयोगद्वार की टीका में इस प्रकार किया है प्रश्न – यदि आकाश के स्पृष्ट और अस्पृष्ट प्रदेशों का ग्रहण करना है तो बालारों का कोई प्रयोजन नहीं रहता, क्योंकि उस दशा में पूर्वोक्त पल्य के अन्दर जितने प्रदेश हों, उनके अपहरण करने से ही प्रयोजन सिद्ध हो जाता है? उत्तर-आपका कहना ठीक है, किंतु प्रस्तुत पल्योपम से दृष्टिवाद में द्रव्यों के प्रमाण का विचार किया जाता है। उनमें से कुछ द्रव्यों का प्रमाण तो उक्त बालानों से स्पृष्ट आकाश के प्रदेशों के द्वारा ही मापा जाता है। अत: दृष्टिवाद में वर्णित द्रव्यों के मान में उपयोगी होने के कारण बालारों का निर्देश करना सप्रयोजन है, निष्प्रयोजन नहीं है ॥१०२६ ॥ १५९ द्वार: सागरोपम उद्धारपल्लगाणं कोडाकोडी भवेज्ज दसगुणिया। तं सागरोवमस्स उ एक्कस्स भवे परीमाणं ॥ १०२७ ॥ जावइओ उद्धारो अड्डाइज्जाण सागराण भवे। तावइआ खलु लोए हवंति दीवा समुद्दा य ॥ १०२८ ॥ तह अद्धापल्लाणं कोडाकोडी भवेज्ज दसगुणिया। तं सागरोवमस्स उ परिमाणं हवइ एगस्स ॥ १०२९ ॥ सुहुमेण उ अद्धासागरस्स माणेण सव्वजीवाणं । कम्मठिई कायठिई भवट्ठिई होइ नायव्वा ॥ १०३० ॥ इह खेत्तपल्लगाणं कोडाकोडी हवेज्ज दसगुणिया। तं सागरोवमस्स उ एक्कस्स भवे परीमाणं ॥ १०३१ ॥ एएण खेत्तसागरउवमाणेणं हविज्ज नायव्वं । पुढविदगअगणिमारुयहरियतसाणं च परिमाणं ॥ १०३२ ॥ -गाथार्थसागरोपम–उद्धारपल्योपम को दस कोटाकोटी (दस करोड़ x दस करोड़) से गुणा करने पर जो संख्या आती है वह एक सागरोपम का परिमाण है ।। १०२७ ।। ढाई सूक्ष्म उद्धार सागरोपम के जितने समय होते हैं उतने लोक में द्वीप समुद्र हैं ।। १०२८ ।। सूक्ष्म एवं बादर अद्धापल्योपम को दस कोटाकोटी से गुणा करने पर क्रमश: बादर अद्धासागरोपम तथा सूक्ष्म अद्धासागरोपम होता है।। १०२९ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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