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________________ प्रवचन-सारोद्धार १३९ (v) बादर क्षेत्र पल्योपम पूर्ववत् एक योजन लंबे-चौड़े और गहरे प्याले में एक दिन से लेकर सात दिन तक के उगे हुए बालों के अग्र भाग को पहले की ही तरह ठसाठस भर दो। वे अग्रभाग आकाश के जिन प्रदेशों को स्पर्श करें, उनमें से प्रति समय एक-एक प्रदेश का अपहरण करते करते जितने समय में समस्त प्रदेशों का अपहरण किया जा सके, उतने समय को बादर क्षेत्र पल्योपम कहते हैं। यह काल असंख्यात उत्सर्पिणी और असंख्यात अवसर्पिणी काल के बराबर होता है। कारण क्षेत्र अतिसूक्ष्म है, एक-एक बालाग्र पर स्थित आकाश प्रदेशों का अपहार करने में अंगुल के असंख्यातवें भाग में असंख्याती उत्सर्पिणी समाप्त होती हो तो संपूर्ण प्याले के बालानों पर स्थित आकाश प्रदेशों का अपहार करने में असंख्याती उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी लगे तो आश्चर्य ही क्या है? (vi) सूक्ष्म क्षेत्र पल्योपम बादर क्षेत्र के बालानों में से प्रत्येक के असंख्यात खंड करके उन्हें उसी पल्य में पहले की तरह भर दो। उस पल्य में वे खंड आकाश के जिन प्रदेशों का स्पर्श करें और जिन प्रदेशों को स्पर्श न करें, उनमें से प्रतिसमय एक-एक प्रदेश का अपहरण करते-करते जितने समय में स्पृष्ट और अस्पृष्ट सभी प्रदेशों का अपहरण किया जा सके, उतने समय को एक सूक्ष्म क्षेत्र पल्योपम काल कहते हैं। इसका काल भी असंख्यात उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल के बराबर होता है, पर पूर्व की अपेक्षा यह काल असंख्यातगुणा है। कारण, स्पृष्ट आकाश प्रदेशों की अपेक्षा अस्पृष्ट आकाश प्रदेश असंख्यात गुण अधिक हैं। प्रश्न-जो पल्य इतना ठसाठस भरा है कि जिसमें आग-पानी आदि का भी लेशमात्र प्रवेश नहीं हो सकता तो वहाँ अस्पष्ट आकाश प्रदेश कैसे संभवित हो सकते हैं? उत्तर—बालागों के असंख्यातवें भाग की अपेक्षा आकाश प्रदेश अत्यन्त सूक्ष्म होते हैं। अनुयोगद्वार सूत्र में सोदाहरण इस बात को स्पष्ट किया है कि पल्य में बालारों से अस्पृष्ट आकाश प्रदेशों का अस्तित्व है। जैसे—प्रश्नकर्ता पूछता है कि 'क्या पल्य में बालानों से अस्पृष्ट आकाश प्रदेश हैं?' सूत्रकार कहते हैं. हाँ, हैं। प्रश्नकर्ता-उदाहरण देकर समझाइये। सूत्रकार-कद्दू (कोला) से भरे पल्य में किसी ने बीजोरे (नींबू) डाले, वे अन्दर समा गये। फिर क्रमश: बिल्व..आंवले...बेर.चने डाले वे भी समा गये, इससे स्पष्ट हो जाता है कि पल्य में बालारों से अस्पृष्ट आकाश प्रदेश असंख्यात हैं। यद्यपि स्थूलबुद्धि वालों की अपेक्षा यथोक्त पल्य में लेशमात्र भी अवकाश न होने के कारण अस्पृष्ट आकाश प्रदेश की यत्किचित् भी संभावना नहीं रहती तथापि ज्ञानियों की दृष्टि में सूक्ष्म बालाग्र की अपेक्षा आकाश प्रदेश अतिसूक्ष्म होने के कारण अस्पृष्ट असंख्यात आकाश प्रदेश पल्य में होते हैं। देखा भी जाता है कि अत्यन्त ठोस दिखाई देने वाले खंभे, भींत आदि में कील ठोकी जाये तो भीतर घुस जाती है। यदि वे सर्वथा ठोस होते तो कील आदि भीतर प्रवेश नहीं पा सकते । यहाँ एक शंका उत्पन्न होती है कि यदि बालारों से स्पृष्ट और अस्पृष्ट सभी प्रदेश ग्रहण किये जाते हैं तो बालागों का कुछ भी प्रयोजन नहीं रहता। इस शंका और उसके समाधान का चित्रण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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