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द्वार १
९. 'सव्वन्नूणं..जिअभयाणं' आदि तीन आलापकों वाली नौंवी अभय सम्पदा है। जहाँ प्रधानगुण की विद्यमानता है वहाँ प्रधान फल की प्राप्ति अवश्य होती है। सर्वज्ञता, सर्वदर्शिता आदि प्रधान गण हैं और वे परमात्मा में विद्यमान हैं अत: उनके फलरूप मोक्ष की प्राप्ति भी उनको अवश्यमेव होती है। मोक्ष निर्भयता का कारण है अत: यह अभय सम्पदा है।
प्रश्न-अरिहंतरूप एक व्यक्ति में भिन्न-भिन्न स्वभाव वाली ये सम्पदायें कैसे घटित होंगी?
उत्तर—जैन दर्शन के अनुसार प्रत्येक वस्तु अनंत धर्मात्मक होने से अरिहंत रूप एक व्यक्ति में भी भिन्न-भिन्न स्वभाव वाली पूर्वोक्त सम्पदायें मुख्यवृत्ति से घटित हो सकती हैं। इसमें शङ्का का लेशमात्र भी अवकाश नहीं है।
'प्रत्येक वस्तु अनंतधर्मात्मक है' इसका सविस्तार वर्णन हमारे गुरुदेव (पू. देवभद्रसूरि) ने अपने द्वारा रचित 'प्रमाणप्रकाश' 'वादमहार्णव' आदि ग्रन्थों में किया है जिज्ञासु वहाँ देखें।
कुल मिलाकर शक्रस्तव के ३३ पद हैं। वैसे तो परमात्मा अनन्तगुण सम्पन्न हैं, पर ये सम्पदायें मुख्य गुणों की ही सूचक हैं।
'शक्रस्तव' के अन्त में 'जे अ अईआ सिद्धा' गाथा अवश्य बोलनी चाहिये। औपपातिक सूत्र में 'शक्रस्तव' 'जिअभयाणं' तक ही है, अत: इतना ही बोलना चाहिये, ऐसा कथन कदाग्रहपूर्ण होगा, क्योंकि निष्कपट व निरभिमानी गीतार्थ महर्षियों द्वारा यह गाथा स्वीकृत होने से हमारे लिये भी आदरणीय है । ८२ ।। ४. अरिहंतचेइयाणं की सम्पदा : ८
१. अरिहंतचेइयाणं.....करेमि काउस्सग्गं = २ पद की। २. वंदणवत्तिआए...निरुवसग्गवत्तिआए
= ६ पद की। ३. सद्धाए....ठामि काउस्सग्गं
= ७ पद की। ४. अन्नत्थ..पित्तमुच्छाए
= ८ पद की। ५. सुहुमेहि....दिट्ठिसंचालेहि
= ३ पद की। ६. एवमाइ....हुज्ज मे काउस्सग्गं
= ६ पद की। ७. जाव....न पारेमि
= ४ पद की। ८. ताव....वोसिरामि
= ६ पद की। ५. चतुर्विंशतिस्तव (लोगस्स.) की सम्पदा = २८ है। ६. श्रुतस्तव (पुक्खरवरदीवड्डे.) की सम्पदा = १६ है। ७. सिद्धस्तव (सिद्धाणं-बुद्धाणं) की सम्पदा = २० है।
पूर्वोक्त तीनों सूत्रों की पद-सम्पदायें बराबर हैं। क्योंकि सूत्र बोलते समय विराम भी पद के अन्त में ही होता है ।। ८३ ॥
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