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प्रवचन - सारोद्धार
२०६. पाखण्डी ३६३
२०७. प्रमाद २०८. चक्रवर्ती
२०९.
बलदेव
२१०. वासुदेव २११. प्रतिवासुदेव
२१२. चौदह रत्न
२१३. नवनिधि
२१४. जीवसंख्या
२१५. अष्ट कर्म
२१६. उत्तरप्रकृति
२१७. बंधादिस्वरूप २१८. कर्मस्थिति
२१९. पुण्यप्रकृति २२०. पापप्रकृति
२२१. भावषट्क २२२. जीव भेद २२३. अजीव भेद
२२४. गुणस्थान २२५. मार्गणास्थान
२२६. उपयोग
२२७. योग
२२८. गति
२२९. कालमान
२३०. वैक्रिया
२३१. समुद्घात २३२. पर्याप्ति
२३३. अनाहारक
२३४. भय स्थान
२३५. अप्रशस्त भाषा २३६. अणु व्रत-भंग-भेद
२३७. पाप-स्थानक
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तीन सौ त्रेसठ पाखण्डियों की संख्या ।
आठ प्रमाद ।
भरत क्षेत्र के अधिपति अर्थात् चक्रवर्तियों की संख्या ।
बलदेवों की संख्या ।
वासुदेवों की संख्या । प्रतिवासुदेवों की संख्या । चक्रवर्ती के चौदह रत्न ।
नव प्रकार की निधियाँ ।
जीवों की संख्या । ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्म ।
आठ कर्मों की एक सौ अट्ठावन उत्तरप्रकृति |
कर्मों के बंध, उदय, उदीरणा व सत्ता का स्वरूप ।
आठ कर्मों की स्थिति ।
बयालीस पुण्यप्रकृति |
बयासी पापप्रकृति ।
भेद सहित औदयिकादि छः भाव ।
जीव के चौदह भेद । अजीव के चौदहे भेद |
चौदह गुणस्थान |
चौदह मार्गणास्थान |
बारह उपयोग ।
पन्द्रह योग ।
किस गुणस्थान में मरने वाले की कौनसी गति होती है ? स्थानों का कालमा ।
नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देवों के वैक्रिय का कालमान । सात समुद्घात । छ: पर्याप्ति
चार अनाहारक ।
सात भय स्थान ।
छह प्रकार की अप्रशस्त भाषा । गृहस्थों के व्रत सम्बन्धी भांगे ।
अठारह पापस्थान ।
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