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• ऐं नम: .
• श्रीआदिनाथाय नम: । • श्रीजिनदत्त-मणिधारीजिनचन्द्र-जिनकुशल-जिनचन्द्रगुरुभ्यो नमः .
• प्रेम-अनुभवगुरुवर्याभ्यो नम: • • श्रीनेमिचन्द्रसूरि प्रणीत . प्रवचन-सारोद्धार
(हिन्दी-व्याख्या सहित) श्रीसिद्धसेनसूरि रचित टीका का मङ्गलाचरण सन्नद्धैरपि यत्तमोभिरखिलैर्न स्पृश्यते कुत्रचित्, चञ्चत्कालकलाभिरप्यनुकुलं यन्नीयते न क्षयम् । तेजोभि: स्फुरितैः परैरपि हठादाक्रम्यते यन्न त
ज्जैनं सर्वजगत्प्रकाशनपटु ज्योति: परं नन्दतु ॥१॥ (१) चारों ओर फैला हुआ अज्ञानरूपी अंधकार जिसे छू भी नहीं सकता, जगत के संपूर्ण पदार्थों को प्रतिपल क्षय करने वाली काल की कला जिसे क्षय नहीं कर सकती, जिसका तेज अन्य तेजों से कभी मंद नहीं होता, ऐसी विश्व को प्रकाशित करने वाली 'जैनी-ज्योति' (परमात्मा की ज्ञान ज्योति) निरन्तर बढ़ती रहे।
यो ध्यानेन निमूलकाषमकषद द्वेषादिविद्वेषिणो, यस्त्रैलोक्यविलोकनैकरसिकं ज्योति: किमप्यातनोत् । य: सद्भूतमशेषमर्थमवदत् दुर्वादिवित्रासकृद्,
देवाज़: शिवतातिरस्तु स विभुः श्रीवर्धमान: सताम् ॥२॥ ___ (२) शुभध्यान के बल से राग, द्वेषादि शत्रुओं का समूल नाश करने वाले, त्रैलोक्यदर्शिनी केवलज्ञान । की ज्योति को प्रकट करने वाले, अन्य दर्शनियों को शंकित करने वाले पदार्थों के यथार्थ स्वरूप के प्रतिपादक, देव, देवेन्द्रों से पूजित, भगवान श्री महावीर प्रभु सत्पुरुषों का कल्याण करें।
स्वगुरूणामादेशं चिन्तामणिसोदरं समासाद्य ।
श्रेयस्कृते करोमि प्रवचनसारस्य वृत्तिमिमाम् ॥३॥ (३) चिन्तामणिरत्न के समान (चिन्तित अर्थ को देने से) अपने गुरुदेव की आज्ञा पाकर मैं (सिद्धसेन सूरि) परोपकार के लिये प्रवचन सारोद्धार की 'तत्त्वविकाशिनी' नाम की टीका करता हूँ।
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