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________________ द्वारों का अनुक्रम २०२ १६३ २५० २६२ ८२. ५१. एक समय में उत्पत्ति और च्यवन का ६३. एक गर्भ के कितने पिता? २४६ विरहकाल २०१ ६४. कितने समय बाद स्त्री-पुरुष ५२. देवों की गति अबीज बनते हैं? २४७ ५३. देवों की आगति २०३ ६५. शुक्र रुधिर ओजस् आदि का परिमाण । २४८ ५४. पन्द्रह कर्मभूमि ६६. मनुष्य भव के लिये अयोग्य जीव ५५. तीस अकर्मभूमि १६४ ६७. भरत क्षेत्र के अधिपति ५६. छप्पन अन्तर्वीप ६८. बलदेव २०९ ५७. तिर्यंच स्त्री की उत्कृष्ट गर्भस्थिति २४० ६९. वासुदेव २१० ५८. मनुष्य-स्त्री की उत्कृष्ट गर्भस्थिति २४१ ७०. प्रतिवासुदेव २११ मनुष्य पुरुष की गर्भ की कायस्थिति २४२ ७१. चौदह रत्न २१२ ६०. गर्भस्थित जीव का आहार २४३ ७२. नव-निधि २१३ ६१. गर्भोत्त्पत्ति काल २४४ ७३. युगप्रधान आचार्यों की संख्या २६४ ६२. एक साथ कितने गर्भ? २४५ ७४. अपहरण-अयोग्य व्यक्ति २६१ ६. कर्म-साहित्य विभाग द्वार का नाम द्वार संख्या द्वार का नाम द्वार संख्या आठ कर्म २१५ ११. उपशम श्रेणि ९० २. उत्तर प्रकति १५८ २१६ १२. मार्गणा १४ ३. - पुण्य प्रकृति ४२ २१९ १३. उपयोग १२ २२६ ४. पाप-प्रकृति ८२ १४. योग १५ २२७ ५. बंध-उदय-उदीरणा और सत्ता का स्वरूप २१७ १५. षट्भाव २२१ अबाधा सहित कर्म-स्थिति २१८ १६. षट्स्थान २६० ७. चौदह गुणस्थानक २२४ १७. सम्यक्त्व आदि उत्तम गुणों की प्राप्ति ८. गुणस्थानकों का काल प्रमाण २२९ में उत्कृष्ट अन्तर २४९ गुणस्थानकों में परलोक गति २२८ १८. प्रमाद के आठ भेद २०७ १०. क्षपक श्रेणि ८९ १९. मद के आठ भेद १६५ ७. तीर्थंकर-विभाग द्वार का नाम द्वार संख्या द्वार का नाम द्वार संख्या १. तीर्थंकरों के नाम ७ ७. आयुष्य २. तीर्थंकरों के माता-पिता के नाम ११ ८. आठ महाप्रातिहार्य ३. माता-पिता की गति १२ ९. चौतीश अतिशय तीर्थंकरों का देहमान (शरीर प्रमाण) अठारह दोष ५. लंछन २९. ११. दीक्षा-समय का परिवार ६. वर्ण ३० १२. दीक्षा समय का तप २२५ २२० For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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