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मन की बात
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पारसमलजी भंसाली अध्यक्ष, श्री जैन श्वे. नाकोड़ा तीर्थ, मेवानगर एवं साहित्यवाचस्पति महोपाध्याय विनयसागरजी, निदेशक, प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर को हार्दिक साधुवाद देती हूँ, जिन्होंने इस ग्रन्थ को जनसुलभ कराने में अदम्य उत्साह दिखाया है। भविष्य में उनके इसी उत्साह की पुन:-पुन: अपेक्षा है।
इस ग्रन्थ का अधिकाधिक स्वाध्याय कर तत्त्वजिज्ञासु आत्मा श्रुतज्ञान को आत्मसात् करें यही शुभेच्छा है।
श्री जिनकुशलसूरि दादाबाड़ी, पूना, वि.सं.२०५४, माघसुदी १५.
अनुभव गुरु चरणरज साध्वी हेमप्रभा
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