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________________ श्रीऋषभदेवस्वामिने नमः । श्रीशंखेश्वरपार्श्वनाथाय नमः । श्रीमहावीरस्वामिने नमः । श्रीगौतमस्वामिने नमः। आचार्यप्रवर श्री नेमिचन्द्रसूरि विरचित प्रवचनसारोद्धार में सचमुच जैन प्रवचन का सार संगृहीत किया गया है। आचार्य श्री सिद्धसेनसूरि विरचित वृत्ति सहित इस ग्रन्थ के पठन से जैन धर्म सम्बन्धी अनेक-अनेक शास्त्रीय पदार्थों का सुचारु रूप से ज्ञान सम्पन्न होता है। मेरे परम पूज्य गुरुदेव एवं पिताश्री मुनिराज श्री भुवनविजयजी महाराज का यह अतिप्रिय ग्रंथ था। साध्वीजी श्री हेमप्रभाश्रीजी ने वृत्ति सहित इस ग्रंथ का हिन्दी भाषा में सुंदर अनुवाद कर हिन्दी भाषा जानने वाले जैन तत्त्वज्ञान के अभ्यासी लोगों के ऊपर बड़ा उपकार किया है। जैन शास्त्रों के अभ्यासी इस ग्रन्थ को पढ़कर जैन शास्त्रों के विविध विषयों का सुंदर ज्ञान प्राप्त करें एवं साध्वीजी के श्रम को सार्थक करें, यही अभिलाषा! जैसलमेर (राजस्थान) १५-१०-६८. गुरुवार पूज्यपादाचार्य-महाराज-श्रीमद्विजय सिद्धिसूरीश्वर-पट्टालंकार-पूज्यपादाचार्य महाराज-श्रीमद्विजयमे घसूरीश्वरशिष्य-पूज्यपाद-गुरुदेव-मुनिराज श्रीभुवनविजयान्तेवासी मुनि जम्बूविजय (त SAY Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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