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________________ 951028 प्रकाशकीय प्रवचनसारोद्धार जैनों का एक महत्त्वपूर्ण संकलन ग्रन्थ है। १२वीं शताब्दि की यह रचना साध्वाचार का एक संदर्भ ग्रन्थ भी है। यह अपने पूर्ण रूप में हिन्दी भाषा में अभी तक अननुवादित था। विदुषी साध्वी श्री हेमप्रभाश्रीजी म.सा. प्रखर ने यह भागीरथ प्रयत्न सफलतापूर्वक संपन्न किया और प्राकृत भारती अकादमी को प्रकाशन दायित्व दिया इसके लिए हम उनका आभार प्रकट करते हैं। प्रतिभा सम्पन्न मनीषी डॉ० सागरमलजी जैन ने इस ग्रन्थ की विस्तृत भूमिका तैयार की जो सुधी पाठकों को इस ग्रन्थ के मर्म को समझने में सहायक होगी। हम उनके निरन्तर सहयोग के लिए कृतज्ञ हैं। इस पुस्तक के प्रकाशन की योजना आठ वर्ष पूर्व ही निश्चित हो चुकी थी, किन्तु विभिन्न अप्रत्याशित व्यवधानों के कारण विलम्ब होता गया, पर यह अन्तराल व्यर्थ नहीं गया। इस बीच ग्रन्थ के संयोजन व आकार में वांछित परिवर्तन और संवर्धन होता रहा जिससे यह संभवतः आदर्श रूप बन सका। इस महत्त्वपूर्ण संपादन-संशोधन कार्य में साहित्यवाचस्पति महोपाध्याय विनयसागरजी ने अपनी पूर्ण विद्वत्ता तथा लगन से योगदान दिया है। यद्यपि वे प्राकृत भारती परिवार के सदस्य हैं, उनके प्रति धन्यवाद प्रकट न करना कृपणता होगी। श्रमण समुदाय के लिए विशेष उपयोगी ग्रन्थ का प्रकाशन प्राकृत भारती अकादमी और श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ ट्रस्ट के संयुक्त प्रकाशनों की कड़ी में हो रहा है। आशा है जैन साहित्य प्रकाशन के क्षेत्र में दोनों संस्थाओं की परस्पर सहयोग की यह परम्परा अक्षुण्ण बनी रहेगी। देवेन्द्रराज मेहता पारसमल भंसाली अध्यक्ष नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर प्राकृत भारती अकादमी जयपुर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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