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द्वार ९१
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८. अनासन्न–मन्दिर, बगीचे आदि से दूर मलोत्सर्ग करना चाहिये। आसन्न के दो भेद हैं(i) द्रव्यासन्न व (ii) भावासन्न
(i) द्रव्यासन्न--- बगीचा, घर, खेत, रास्ता आदि के नजदीक स्थंडिल जाना। इससे मन्दिर आदि का मालिक साधु पर क्रुद्ध होकर उसकी ताड़ना-तर्जना आदि करे। इससे आत्मविराधना तथा नौकर आदि के द्वारा मल को वहाँ से हटाकर दूर डलवाने... उस स्थान को पुन: लीपने व हाथ आदि के प्रक्षालन से संयम विराधना होती है।
(ii) भावासन्न स्थंडिल गमन की शीघ्रता वाला। साधु की गति से जानकर कि इन्हें स्थंडिल जोर से आ रहा है, कोई प्रत्यनीक साधु को मजाक बनाने के लिये प्रश्न पूछने के बहाने रास्ते में ही मुनि को खड़ा रखे, जिससे साधु को स्थंडिल रोकना पड़े। इससे रोगादि होने से आत्म-विराधना, स्थंडिल न रुके और जंघादि भर जाये तो लोगों में हँसी होने से प्रवचन विराधना, शरीर-वस्त्र आदि धोने से संयम विराधना हो । अत: द्रव्यासन्न और भावासन्न दोनों का त्याग करना चाहिये । शीघ्रता में अप्रत्युपेक्षित स्थंडिल में मलोत्सर्ग करे, तो भी संयम-विराधना होती है।
९. बिलवर्जित–बिलरहित स्थान में मलोत्सर्ग करना चाहिये। बिलयुक्त स्थान में मलोत्सर्ग करने से मात्रा, पानी आदि बिल में जाने से उसमें रही हुई कीड़ियाँ आदि जीवों की विराधना होती है। बिलगत साँप, बिच्छु आदि जीवों के काटने से आत्म-विराधना होती है।
१०. त्रस-प्राण बीज रहित-स्थावर और जंगम जन्तुओं से रहित स्थंडिल । जीव युक्त (त्रस व बीजयुक्त) भूमि में मलोत्सर्ग करने से हिंसा के कारण संयम-विराधना होती है। सर्पादि के काटने से तथा बीज चुभने वाले हों तो पाँव में चुभने से साधु के गिरने की सम्भावना रहती है, इससे आत्मविराधना।
पूर्वोक्त दशविध स्थंडिल के १ संयोगी...२ संयोग....३ संयोगी यावत् १० संयोगी भांगा करने से कुल १०२४ भांगे होते हैं।
किस संयोग में कितने भांगे होते हैं? इन्हें लाने की निम्न रीति हैभांगा की करणगाथा
उभयमुहरासिदुगं हेडिल्लाणंतरेण भय पढ़मं ।
लद्धहरासि विभत्ते, तस्सुवरि गुणित्तु संजोगा। जितने संयोगी भांगे करने हो, उतनी संख्या को क्रमश: लिखना। उसके नीचे पश्चानुपूर्वी से वही संख्या लिखना। फिर निम्न पंक्ति की पहली संख्या से उसके ऊपर की संख्या को गुणा करना। जो गुणनफल आवे, उसे नीचे लिखना। फिर नीचे की दूसरी संख्या से उस गुणनफल में भाग देना। जो भागफल आवे, उसे ऊपर की दूसरी संख्या से गुणा करके गुणनफल नीचे लिखना। फिर उसे नीचे की तीसरी संख्या से भाग देना। जो भागफल आवे, उसे ऊपर की तीसरी संख्या से गुणा करके नीचे
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