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प्रवचन - सारोद्धार
• चर्या है तो निषद्या, शय्या नहीं होती । • निषद्या है तो चर्या, शय्या नहीं होती । · शय्या है तो निषद्या, चर्या नहीं होती ॥ ६९१ ॥
८७ द्वार :
सुत्ते अत्थे भोयण काले आवस्सए य सज्झाए। संथारे चेव तहा सत्तेया मंडली जइणो ॥ ६९२॥ -गाथार्थ
सात प्रकार की मांडली - - १. सूत्र, २. अर्थ, ३. भोजन, ४. काल, ५. आवश्यक, ६. स्वाध्याय तथा ७. संथारा - मुनियों की ये सात मांडली हैं । ६९२ ॥
-विवेचन
मांडली =
क्रिया कलाप के लिये एकत्रित समूह। यह सात प्रकार की है
(i) सूत्र मांडली, (ii) अर्थ मांडली, (iii) भोजन मांडली, (iv) कालग्रहण मांडली, (v) प्रतिक्रमण मांडली, (vi) स्वाध्याय मांडली, (vii) संथारा मांडली
इन सातों मांडली में एक-एक आयंबिल करने के बाद में प्रवेश किया जा सकता है । ६९२ ॥
८८ द्वार :
१. मनः पर्यवज्ञान
२. परमावधिज्ञान
३. पुलाकलब्धि
४. आहारकलब्धि
मण्डली
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१० व्यवच्छेद
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मण परमोहि पुलाए आहारग खवग उवसमे कप्पे ।
संयमतिय केवल सिज्झणा य जंबुंमि वोच्छिन्ना ॥६९३ ॥ -गाथार्थ
दस स्थानों का विच्छेद - १. मनः पर्यवज्ञान, २. परमावधिज्ञान, ३. पुलाकलब्धि ४. आहारक शरीर, ५. क्षपक श्रेणि, ६. उपशमश्रेणि, ७. जिनकल्प, ८. संयमत्रिक, ९. केवलज्ञान एवं १० सिद्धिगमन - ये दस वस्तुयें जंबूस्वामी के सिद्धिगमन के पश्चात् विच्छिन्न हो गई हैं ।। ६९३ ।।
-विवेचन
५. क्षपक श्रेणि
६. उपशमश्रेणि
७. जिनकल्प
८. संयमत्रिक (परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसंपराय, यथाख्यात)
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९. केवलज्ञान
१०. सिद्धिगमन
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