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________________ ३६४ • दर्शनावरण, आयु, नाम व गोत्र – इन चार कर्मों के उदय में कोई भी परीषह नहीं आता अतः इनमें किसी भी परीषह का समवतार नहीं होता ।। ६८७-६८९ ॥ गुणस्थान समवतार ९वें गुणस्थान पर्यन्त १० वें, ११ वें, १२ वें गुणस्थान पर्यन्त | १३ वें १४वें गुणस्थान पर्यन्त द्वार ८६ | २२ परीषह होते हैं । क्षुधा, पिपासा, शीत, उष्ण, दंश, चर्या, शय्या, वध, अलाभ, रोग, तृणस्पर्श, मल, प्रज्ञा व अज्ञान परीषह होते हैं 1 क्षुधा, पिपासा, शीत, उष्ण, दंश, चर्या, वध, मल, शय्या, रोग, तृणस्पर्श परीषह होते हैं । • १० वें गुणस्थान में मोहनीय का क्षय व उपशम हो जाने से चारित्रमोह से सम्बन्धित सात परीषह व दर्शनमोह से सम्बन्धित एक परीषह कुल आठ परीषह कम हो जाते हैं अत: ११वें और १२वें गुणस्थान में १४ परीषह ही होते हैं । १३ वें और १४वें गुणस्थान में मात्र वेदनीय जन्य ११ परीषह ही रह जाते हैं । कहा है क्षुत्पिपासा च शीतोष्णे, दंशाश्चर्या वधो मलः । शय्या रोगतृणस्पर्शी, जिने वेद्यस्य सम्भवात् ॥ ६९० ॥ प्रश्न- एक साथ एक आत्मा को उत्कृष्ट व जघन्य से कितने परीषह सहन करने पड़ते हैं ? उत्तर - एक साथ एक आत्मा को उत्कृष्ट से २० व जघन्य से एक परीषह होता है । प्रश्न— उत्कृष्टत: एक साथ बावीस परीषह क्यों नहीं होते ? उत्तर-शीत और उष्ण, चर्या व नैषेधिकी परस्पर विरोधी होने से एक ही समय में एक साथ नहीं हो सकते। जब शीत परीषह होता है तब उष्ण परीषह नहीं हो सकता और जब उष्ण होता है तब शीत नहीं हो सकता। ऐसे ही चर्या व निषद्या का समझना । अतः एक साथ बीस ही परीषह सम्भवित होते हैं । Jain Education International प्रश्न- जैसे नैषेधिकी के साथ चर्या का विरोध है वैसे शय्या के साथ भी चर्या का विरोध होगा? ऐसी स्थिति में एक साथ २० परीषह भी कैसे होंगे ? उत्तर—चर्या के साथ शय्या का विरोध नहीं है, कारण मूत्र, पुरीषादि की बाधा में अंगों के हिलने-डुलने की सम्भावना रहती है। नैषेधिकी के साथ चर्या नहीं हो सकती, कारण – नैषेधिकी स्वाध्यायभूमि में स्थिरता रूप है । तत्त्वार्थमते —– तत्त्वार्थ के अनुसार एक साथ १९ परीषह ही होते हैं कारण चर्या, शय्या, निषद्या में से एक साथ एक ही परीषह होता है, दो नहीं होते । जैसे— For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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