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द्वार ८५-८६
३५८
अवग्रह कहलाता है। अगर इस बीच अन्य मुनि को वहाँ रहना हो तो पूर्व-स्थित मुनि या आचार्य की अनुज्ञा लेना आवश्यक है। उनकी अनुज्ञा के बिना उस क्षेत्र में उतने काल तक रहना नहीं कल्पता। अपवाद-विशेष अवग्रह से सामान्य अवग्रह बाधित हो जाते हैं अर्थात् १. राजा के अवग्रह में देवेन्द्र का अवग्रह बाधित होता है (वहाँ राजा की आज्ञा लेना
कल्पे)। गृहपति के अवग्रह में राजा का अवग्रह बाधित होता है (वहाँ गृहपति की आज्ञा लेना कल्पे)। सागारिक के अवग्रह में गृहपति का अवग्रह बाधित होता है (वहाँ सागारिक की आज्ञा
लेना कल्पे)। . ४. साधर्मिक के अवग्रह में सागारिक का अवग्रह बाधित होता है (वहाँ साधर्मिक की आज्ञा
लेना कल्पे) ॥ ६८१-६८४ ॥
८६ द्वार:
परीषह
खुहा पिवासा सी उण्हं दंसा चेला रइत्थिओ। चरिया निसीहिया सेज्जा अक्कोस वह जायणा ॥६८५ ॥ अलाभ रोग तणफासा मल सक्कार परीसहा। पन्ना अन्नाण सम्मत्तं इइ बावीसं परीसहा ॥६८६ ॥ दंसणमोहे दंसणपरीसहो पन्नऽनाण पढमंमि। चरमेऽलाभपरीसह सत्तेव चरित्तमोहम्मि ॥६८७ ॥ अक्कोस अरइ इत्थी निसीहियऽचेल जायणा चेव। सक्कारपुरक्कारे एक्कारस वेयणिज्जंमि ॥६८८ ॥ पंचेव आणुपुव्वी चरिया सेज्जा तहेव जल्ले य। वह रोग तणफासा सेसेसुं नत्थि अवयारो ॥६८९ ॥ बावीसं बायरसंपराय चउद्दस य सुहुमरायम्मि। छउमत्थवीयरागे चउदस एक्कारस जिणंमि ॥६९० ॥ वीसं उक्कोसपए वटुंति जहन्नओ य एक्को य। सीओसिणचरियनिसीहिया य जुगवं न वट्ठति ॥६९१ ॥
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