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प्रवचन-सारोद्धार
३४१
७५ द्वारः |
कृतिकर्म
चत्तारि पडिक्कमणे किइकम्मा तिण्णि हुंति सज्झाए। पुव्वण्हे अवरण्हे किइकम्मा चउदस हवंति ॥६४८ ॥
-गाथार्थ७५ : दैनिक वन्दन की संख्या प्रतिक्रमण के चार और स्वाध्याय के तीन, कुल सात वन्दन पूर्वाह्न के और इसी प्रकार सात वन्दन अपराह्न के होते हैं। दोनों मिलकर १४ वन्दन होते हैं ।।६४८ ।।
-विवेचन कृतिकर्म : वन्दन प्रतिक्रमण में चार
१. आलोचन वंदन (तृतीय आवश्यक में) २. क्षामणक वंदन (अब्भुट्ठिओं से पूर्व) ३. आचार्यादि सकल संघ के लिये वंदन (आयरिय उवज्झाय में)
४. प्रत्याख्यान वंदन (छ: आवश्यक में) स्वाध्याय के तीन
१. स्वाध्याय की प्रस्थापना करते समय (योगोद्वहन में)। २. स्वाध्याय प्रवेदन करते समय।
३. स्वाध्याय के पश्चात् । ___ कालग्रहण, उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा आदि के वंदन स्वाध्याय वंदन के अन्तर्भूत हैं। अत: अलग से नहीं कहे।
सात प्रात: + सात सायं = चौदह । पूर्वोक्त चौदह वंदन प्रतिदिन उपवास कर्ता के हैं। आहार करने वाले के अपराह्न में प्रत्याख्यान लेते समय एक वंदन और अधिक होने से पन्द्रह वंदन होते हैं । ६४८ ॥
७६ द्वारः |
क्षेत्र-चारित्र-संख्या
तिण्णि य चारित्ताइं बावीसजिणाण एरवयभरहे। तह पंचविदेहेसुं बीयं तइयं च नवि होई ॥६४९ ।।
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