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________________ प्रवचन-सारोद्धार ३३९ संमोही भावना के पाँच प्रकार १. उन्मार्ग देशना २. मार्ग-दूषण ३. मार्ग-विप्रतिपत्ति ४. संमोह ५. मोहजनन । (i) उन्मार्ग देशना—ज्ञानादि को दूषित न करते हुए दूसरों को धर्म से विपरीत मार्ग बताना, जैसे 'तुम्हें पूजा ही करना है तो हनुमान की पूजा कर लेना।' ऐसा उपदेश स्व-पर के लिए अहितकर (ii) मार्ग-दूषण—ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूप भाव-मार्ग तथा उसकी आराधना करने वाले साधुओं पर मन कल्पित आरोप लगाना । (iii) मार्ग-विप्रतिपत्ति-रत्नत्रय के मार्ग को असत्य बताते हुए जमाली की तरह आंशिक उन्मार्ग का प्रतिपादन करना। (iv) संमोह-अति गहन वीतराग प्ररूपित धर्म को समझ न पाने के कारण भ्रमित होना व अन्य धर्मों के अनेकविध आडम्बर देखकर उनके प्रति आकृष्ट होना। . (v) मोहजनन–सहज भाव से अथवा माया से दूसरों को अन्य-धर्म का रागी बनाना। ऐसे आत्मा को बोधि की प्राप्ति नहीं होती। ये पच्चीस भावना सम्यक् चारित्र की बाधक होने से अशुभ हैं अत: साधुओं को इन भावनाओं का त्याग करना चाहिये। इनके त्याग से सम्यक् चारित्र का लाभ होता है । ६४६ ।। ७४ द्वार: महाव्रत पंचवओ खलु धम्मो पुरिमस्स य पच्छिमस्स य जिणस्स। मज्झिमयाण जिणाणं चउव्वओ होइ विन्नेओ ॥६४७ ॥ -गाथर्थमहाव्रतों की संख्या–प्रथम और अन्तिम जिनेश्वर के मुनियों का आचार धर्म पाँच महाव्रत रूप है। मध्यम बावीस तीर्थंकरों का धर्म चार महाव्रत रूप है ।।६४७ ।। -विवेचनमहाव्रत = चारित्र धर्म । महाव्रत के ५ प्रकार हैं(i) प्राणातिपातविरमणव्रत हिंसा का सर्वथा त्याग (ii) मृषावाद विरमणव्रत असत्य का सर्वथा त्याग (iii) अदत्तादान विरमणव्रत चोरी का सर्वथा त्याग (iv) मैथुनविरमणव्रत अब्रह्म का सर्वथा त्याग (v) परिग्रह परिमाण' व्रत मूर्छा का सर्वथा त्याग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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